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प्रति=पाटन भंडार । डा० २६४ नं० १२६४० पत्र ६, (अत का एक पृष्ठ रिक्त, पत्र ५३ लिखे ), पक्ति ३६, अक्षर ५३ । अंत-'इति सभा शृगार ग्रंथ लवलेशोयं । लिपिकृतः संवत् १६७७ वर्षे आश्विन २०८ दिने मगल । छः॥
समाश्रृंगार नं० ३ ( स० ३-इसकी दो पूर्ण और तीन त्रुटित (अश रूप ) प्रतियाँ मिलीं ।
१-मोतीचंद खजानची सग्रह । पत्र १२ की पूर्ण प्रति । न्य एक गुटका सं० १७६२ के लिखित से नकल करवाई थी उसे बहुत वर्ष होने से स्मरण नहीं, वह कहॉ का था।
ले० प्र० इति सभा शृगार सम्पूर्ण । सवत् १७६२ वर्षे फाल्गुन सुदी सप्तम्या तियो भृगुवारे, गणि महिमाविजयेन लिपिकृता श्रीरस्तु । श्लोक ग्रन्याग्रन्थ ७५६ । ए ग्रन्थ सख्या जायते ।
२-भाडारकर अोरियन्टल रिसर्च इन्टोन्यूट पूना, की प्रतिन०६७१ सन् १८६६ से १६१५ का संग्रह । इसमे न० १ प्रति के 'अंधारी रात' वर्णन तक का प्रसग श्राया है। नं० १ में इसके बाद कुछ वर्णन और है।
अत इस प्रकार है-इति सभाशृंगार सपूर्णम् । स० १७८१ वर्षे जेठ सुदी ७ चद्भवासरे । लिखितम् बानपुर नगरे । शुभभवतु ।।
सभाशृंगार नं०४ (सं० ४) उपाध्याय विनयसागरजी सग्रह कोटा की प्रति, पत्र १०, पंक्ति १७,
अक्षर ४३ । इसके प्रारभिक वर्णन तो सभाशृंगार न० ३ के ही हैं । पीछे के स्वतंत्र हैं और वे अधिकतर जैन सबवित ही है । लेखन प्रशस्ति इस प्रकार हैं :-इति सभा_गारहार सपूर्णम् । लिखितं गणि उत्तमकुशलेन श्री श्रामेठ नगरे श्री पाश्वं प्रसादात् । प्रति १६वीं शताव्दि की लिखी हुई है। भारतीय विद्याभवन, बबई से मुनि जिनविजयजी संग्रह की प्रति पीछे से मिली, जिस में प्रारभिक अश ही या और नई लिखी हुई थी इसलिये उसका उपयोग नहीं किया गया ।
सभाशृंगार नं० ५। (सं० ५) चित्तौड़ के यति बालचदजी के संग्रह से १ पत्र १८ वीं शती का
सभाएंगार के नाम का मिला था, जिसमे कुछ वर्णन थे ।