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ते हव कि भवनि ?
उत्तु ग तोरण मंडप । रत्नमय भूमि । स्वर्ग मय श्रासन | वैडूर्य रत्नमय आडणी, न जाइ किणही तैं छाडणी । अति विशाल |
माणिक्य मय स्थाल,
चडसट्टि वाटुली, समइ श्रावर्त्तइ वली ।
७५ - घर नी श्रोषमा
मोटा घर, गया न लागइ कर । वित्त ना डोकर, घणा धाननो भर । चिहु खूणे वासइ अगर, सेज फूलनी पगर । मोटा डागला, तिहा जड्या प्रवाला । मोटीसाला, सोना रूपानी टकसाला | मोटा किवाड, तिहा केलिना झाड़ | जीमइ प्राहुणानी चोल, घूमइ विलोवणा झलझोल, सूहव नारी करइ रंगरोल । साधु नइ दीजै दान, घरणा पकवान, उन्हा धान, रूड़े वान, दया पालै, दुखिया ना दुख टालइ । भिख्यारी नइ दीजइ अन्न, तोल न पाम्यो धन्न । जाता श्रावता आदर करहुएहवा साहूकार ना घर धन सहित छइ । ७६ -- साहूकार रो घर
मोटा घर, गयां न लागै कर ।
बइठां न को डर, घरपा धान नो भर । चिह्न खूरौ वासै अगर, सेफे फूल ना पगर । मोटा श्राला, विहा जडित प्रवाला ।
जीमे साल
दाल |
मोटी साल, तिहा खेले बाल । वरे धणा सोना ना थाल, सुरही घी नी नाल, तोरण मोत्या री माल । सोना रूपा नी टकसाल 1
नै
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मोटा कमाड, तिहा केलां ना भाड़ ।
नीने प्रारणा नी श्रोल, घूमै विलोरणा नी मझोल ।
सुहृद नारी करें रगरोल,
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साधने दीजै दान, धणा पकवान । ऊन्हा धान, डैवान | दया पाळें, दुखिवा ना दुख टाळे | भिखारी ने दीने अन्न, तो भलै पान्यो धन्न । जाता वां श्रादर करें, पुन्य तसा पोता भरै ॥
एहवा साहूकार ना घर
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