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( २६४) तदनतरि । मुगन्ध पच वर्ण पुष्प पगर फूल । जाइ, जूही, कुद, मुचकुंद, केतकी, केवडा, चपक, मोगर, मालती, जासूल | कमलादिक बहुविध फूल दीपह। तदनतरि बहु विध वस्त्रे करी पहिरावणी, अत्र वस्त्र नामानि अष्टम पदे पंचम कथाया लिखितानि वाच्यानि ।
१४ भोजन वर्णन (रसवती) (४) माड्यउ उत्तंग तोरण माडउ, तुरत नउ कस्यउ नवउ । ते कहवउ ? ऊचर दल-बादल तबू जेहवउ । तेहनइ तलइ पागणउ, तेतउ नील रत्न तणउ । तिहाँ सखरा माझ्या पासण, तउ बइमवा नी सी विमासण ? आगइ मू की सोना नी पाडणी, ते कहउ किम जाइ छाडणी ? ऊपरि धरया स्वर्णमय थाल, अत्यन्त धणु विसाल । विचिमइ चउसहि वाटकी, नव-नव घाटकी । थालइ गगोदक धोवण दीधा, तिणसु कर पवित्र कीधा ।
परीसणहारी सिगली पाति बइठी, तितलइ परीसणहारी परीसिवा पइठी। ते केहवी १ रूपई रभा जेहवी । सोल शृगार सज्या, बीजा सर्व काम तज्या । रूप नी रूडी, हाथे खलकइ सोना नी चूडी। लघु.... .ला, मन कीधा मोकला। चित्त नी उदार, अतिहि दातार । पहिरया गलि नवसर हार, मुख पद्म दलाकार । अपछरा नइ अणुहार,.. .. । .. सर दिहइ मिलइ तेहने उसास, . . । सर्व दूषण रहित, सीलादिक गुण सहित । धसमसती अावी, सहु नइ अति भावी । पहिली फलहलि परीसइ, सिगला ना हीया हीसइ । पाका अावारी कातली, निपुण पणइ कीधी पातली। के छोली के मोली, के बूरा घृत सू घोली ॥ अलबेली...... परीसइ सहेली, नेह गहेली ।।