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(२७८) काक रतन ने स्यु करे, वानरो हार ने स्युं करें। असती शील ने स्युं करें, वणिकाकूराज्य ने स्युं करें। नपुसक स्त्री ने स्युं करें, दिगम्बर पटकूल नै स्यूं करै । जीव आजीव नै स्यूं करै, अधर्मी धर्म ने स्यूं करै । साजन दुर्जन ने स्यूं करें(दुर्जन सजन नइ त्यूं करइ)+ + "मूर्खः पुस्तकेन । पापी सुकृतेन । अंधा अजनेन । षढोदयितया । दुर्जन
उपकारेण । वको मानस सरसा। सालूरः कमलेन । ग्रामीण पडित गोष्टया । रजकः क्षपनक ग्रामेण, मक्षिका यक्ष कर्दमेन । कापुरुषः संग्रामेण । पणांगना निर्धनेन । पतित कुचा हारेण । गतवयाः शृगारेणेवि (पु०) उक्त पाठ पु० प्रति में अधिक मिलता है।