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(५) इनमें ये दोप . चद्रस्य क्लको दूपण, सूर्यस्य प्रताप. समुद्रस्य क्षारत्व, शरीरस्य रोगः ।। तपसः क्रोध, जलघरत्य श्यामत्व, ससारस्य दुख भडारत्वं । धनवता कृपणत्व, दानिना निर्धनत्वं । पुण्यवता अवमित्व, स्त्रीणां बदृस्था । मेघत्य चपलत्वं, कमलेनु कटक्वि । एवं विधातुर्दोपा ।
॥ १० ॥ नो०
(५) कोई न कोई कसर सब में (१) विष्णु दशावतारन्ग उडि भागऊ, ईश्वर नागऊ, ब्रह्मा पंचमा मस्तक नो चूको, चंद्रकोरो, शुक्र काणो, शनीचर कूबडो, श्रादित्य सतापकर सूर्वसारथि पागुलो, मगल-विक्रीयो, रावण परन्त्री कारणे विगतो, राम सीताप्रति बनवान हुप्रो, पांडव कौरव विरोधवाधियो, कर्णराजाइ अापण जिह्वा घोडो वाध्यो, विक्रमाटीत्य माग मास खाधो तोही अजरामर न हूओ, नल गजा परघरि सूयारपणो क्रे, हरचन्द चडाल ने घरि पाणी भरे, परमराम बापणी माय तणो शिर कमल छेदे, माघ जेवडो विद्यास पगसूझि भूखि मुऊ, गांगेय जेहवो सुभट पुत्र ने वरा से पड़ें, सगर चक्रवर्ति माठसहरू वेटा तणो दुख . देखे, वासुदेव बलदेव द्वारिकानो दाध उदेखे, भरतेश्वर बाहुबलि मंग्राम (स) श्राप माहि करे, मृत्यु पग हेठल वसि संसार माहि सहुण्इ हंद्रयाल दीने, तेह. कारण शास्वती कीर्ति उपजाववी, जगत मांहि प्रसिद्ध लेवी, इत्यादि जाणवी। (पू०)
(६) दोप सत्र में (२) नसारे नैव कर्त्तव्यः केनाप्चत्र महोटयः । येनो विनि कस्यापि सहते शास्वत सुख ॥ . विष्णु दशावतारि तणइ झउडि भागउ, ऐश्वर नागउ । ब्रह्मा पाचमा मस्तक तउ चूकउ । . चंद्र कोचरउ, शुक्र काणउ । , शनैश्वर कवडउ, आदित्य संतापक ।
:-प्राधणे २-जिशा