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(७६) मूल श्रागम
श्रावश्यक, उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, पिंड नियुक्ति इत्यादि मूल सूत्र च्यार । नंदी सूत्र, अनुयोगद्वार, इत्यादि पैंतालीस ४५ श्रागम जाणवा । वि०
(७७) नवतत्व
(१) जीव, (२) श्रजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) श्राश्रव, (६) सवर, (७) निर्जरा, (८) बध, (६) मोक्ष |
धर्म-श्रधर्म | हेयज्ञेय, उपादेय । निश्चय, व्यवहार । उत्सर्ग अपवाद । श्रव, परिश्रव । श्रतिचार, उपचार । श्रतिक्रम, व्यतिक्रम । इत्यादिक साभल्या विना शास्त्र ना भेट न जाणिइ । ( सभागार की द्वितीय प्रतिका प्रथम पत्र ) ( ७८ ) विगय
तेल, गुल, घृत, दूध, दही, कडाविगय, आमिष, माखण, मधु ६ वियनाम । ( ७६ ) संमूच्छिति उत्पत्ति १४ स्थान
(१) लघुनीति, (२) बडीनीति, (३) श्लेष्म, (४) वमन, (५) पित्त, (६) राघि, (७) थूक, (८) लोही, (६) वीर्य, (१०) वीर्य खरडीया वस्त्र, (११) मृतक, (१२) स्त्री नर संग में, (१३) नगर ने खाल, (२४) अने शुचि, इत्यादि में मच्छिम पचेद्री ऊपने ।
( तीर्थकर माता देखे ) चतुर्दश महास्वप्न वर्णन क्रमेण । (८०) गज वर्णन - ( १ )
ससग प्रतिष्ठितु ! शुरडा दण्डि परि कलितु
मत्तु, मदोन्मत्त ।
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प्रचण्ड, उदण्ड |
विन्ध्याचल समानु; उज्ज्वलवानु ।
कोपारण, जिसउ हुई ऐरावण ।
उज्ज्वल, प्रधान दन्तूसल ।
छूटड हॅूतउ पर्वत प्राकार पाडइ, कुण तिहस्यउ पइ सइ श्रखाडे ।
कुम्भस्थलि सिन्दूर नू पूर; ऊपरि कपूर ।'
सुवर्णमय शृखले करी श्रृलकरउ, गज वस्त्रा परिवरिउ ।
रूप्यमय घंटा निनादु, जेहनउ जगत्र जयवादु ।