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________________ ( १९३) बद्ध मुष्टि नायक, शस्त्र रहित पायक । अति निष्ठुर वाणिउ, खासणउ' चोर । आलसू कमारउ, दुर्विनीत चेलउ, ध्वनरहित देवकुल । जिम गाबडि छोटउं ऊंट, उसियालइ (अनइ) खुंट । वेग पाखद घोडइ, गृहस्थ माथइ बोडइ । एक स्त्री अनइ बूटी, एक ध्वज अनइ अंतरालि त्रूटी । (स.१) ( ३३ ) धर्म महात्म्य परम मंगलं धर्मों धर्मो बुद्धि समृद्धि दः इष्टार्थ साधको५ धर्मो धर्मो मोक्ष दायकः॥ भो भविक लोको, निर्मल विवेको, श्री सर्वज्ञ प्रणीत पुण्य कर्त्तव्य करवउँ । आपणा मनुष्य तणउ फल लेवउ । ए धर्म परम उत्कृष्ट मंगलीक कहियइ, एह प्रसादिइ सर्व कल्याण लहियई। जिम तेज सनलाई सूर्य तेज माहि समाई। निम नदो सवली समुद्र मांहि माइ । जिम पग मधलाइ गजेंद्र पगि अंतर्भवइ । जिम श्राकाशि माहि सर्व पदार्थ श्रावई। तिम दधि, दुर्वा, ऽवत, चदन, कुसुम कंकुम, पूज्यवृद्धाशीर्वाद द्वादश तूर्य निनाद । विवाहादि हर्षणाकल अनेराइ पुत्र जन्मादि महोत्सव सानुकूल ग्रह वैरि निग्रह, भला स्वप्न, शुभ शकुन, प्रमुख प्रमुख सकल मंगलीक माहि अंतभवई देखउ। ज्ञानत्रय सहित श्री तीर्थकर तणइ गर्भावतारि माता अद्भुत १४ स्वप्ना लहइ । चलितासन देवेन्द्र तेऊ फल कहई। देवता गृहागणि निधान संचारइ, रत्न मणि, मौक्तिक, प्रवाल, पराग, दक्षणावत सखे करी भंडार भरई । कण कोठार वृद्धिवत हुइ । गज तुरंगम रथ पदाति समधिक थाइ, अनेक देश संविशेष आपणइ वसि सपजइ, राज्य संपदा वृद्धिवती नीपजइ । अनेक राय राणा आज्ञा मानइ । जन्म समइ छप्पन्न दिक्कमारिका सूति कर्म करइ, श्रापणी रली चउसठी देवेन्द्र जन्माभिषेक करद । १. खापणउ, खोसणउ २. रहित ३ स्त्रीकानि ४. वृद्धि ५. ऽनिष्ठ बाधका । ६ आणा ७. आणी
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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