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((१७२'), सग्रहणी, सीताग, सन्निपात, श्रूललीसक, चादी दाट, वातपित्त, मूळ, मधुरो, बभूत, राघण झोलो, दृष्टिदोष नेत्रदोष, धात, निर्धात, पुन्य यकी ए माहिलो एकेह प्रकासन पामे।
(वि०)
आमिक, मेषधार, जागजोती उपचारका रेछणा, उर, मीलारी, देव, देवला
वेद, वारा, जाणनोसी, देव, देवला, डाकोनरा भोपा, भरडा, भगत, भ्रामिक, भेषधर, भीखारी, भूत्रामडल, जोगी, जती, नदा सोफी, सन्यासी, पछणा, इछणा, उजणा, उतारणा, डोरा मादलिया, तेल, अम्निाय उपचार इत्यादि ।
(४२) व्यक्ति कप्ट-दुस्काल वर्णन दुष्काल वर्णन एहवइ एक पडिउ दुकाल, ठामि २ दीसह नर कपाल । रुंड सुंड मय धरा पीठ चाचरि 'लाली सकीवइ नीठ । नेरती वाय वाजइ, भूपति नांइ हीया भाजइ । मिल्या मेह नासइ, को केहनइ न रहइ पासइ । धनवंत पणि सीटाइ, तउ रांक री किमी गति यायइ । मारग हुया महा विषम, संपरइ चोर विहुगंम' । गोरू विण दीसह गाम देस, वाल्हा छउगया वि)देस । माणस माणस नइ भखइ, आपण पारका नो लखइ । लोक वेचवा लागा पुत्र, छाड़ोजइ फूटराइ कलत्र । रोता बालक देखि, नूपजइ टया (नइ) रेख । लोक घणा निर्द्धन यया, उत्तमइ नीचनइ घरे गया। बडायइ जे जंगम जती तेहइ पणि ताकइ कोई सती। केईक जे घांन रा धणी, तेहइ पणि वावरइ धान मिणी। पाताल भोग लीजइ, सागउ सगानइ न पतीनइ । पहिलं जे लेता वनस्पती, तेह पणि न दीसइ रती। लोक भला लाज छोड़ी, मागवा लागा हाय प्रोडी।
(जो०) बीना भोग सर्व भागा, सत्तु धांनरइ ध्यानि लागा। जे कहीजता दातार ते पगि मागइ कही करतार । वीसासर्व कला गीत, घरि घरि कीजइ अन्नरी चीत। . १. चाली २. किनी ३ चिडु ४ अन्न ५ सहू