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छाने पगि चालs, कुणहई हुई ! श्रापणु चित्त नालइ ।
चार चद्म उपवाडइ, कमाड नी कोडि उघाडइ ।
नउल ना साकल वाढद्द, भुहरा ध्याकेकारण काढइ
दीह सूर, राति पग हंठिद्द करइ,
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नगर सहु सूत्रइन मिलइ कहि नइ साथि, रुधइ नाइ ताली देई हाथि |
राय ने भंडार, खात्रि पाडइ, पग रमाइ इसउ चोरु || १७ ॥ जै०
( ३३ ) चोर वर्णन (२)
विविध वस्तु हेर, बोलाव्यउ बोल फेरइ । चढ़इ माल प्रालि, पइसइ परणाल खालि । कमाड ऊघाडइ, पणि सूतउ को न जगाडइ |
घोर निद्रा द्यइ, कान कोटिरा श्राभरण ल्यइ । कटारी यइ बधन वाढ़इ, पर्वत प्राय केकाण काढइ ।
चढ़िउ चोर पवाडइ, राउला भडार फाडइ ।
खलक नइ घरि द्यइ खात्र, न छोडइ छइल नइ छन ' थात्र ( पा १ ) |
घण निस्यउ गाउ गात्र, दारिद्रय छेदिवा दात्र ।
दीसह दीसह शात, पण रात्रिइं तउ साक्षात् कृतात ।
विणासीयइ त हइ न मानह चोरी, बाध्यउ वाढी जाइ दोरी ।
लोहनी साकलोडर, घडी न रहइ खोडइ' ।
हाकिउ ऊठी ऊजाइ, संधिउ ऊधसी धाइ । करि कोइ करवालि, इ लक्ष लोक विचाली । गढ़नी परनाल, पहसतउ वाघड झालि ।
पाणि ए महापापी, जेणह प्रजा सतापी । सू०
१ छात्र
१ कु० विशेष पाठ इसके वाद -- सीसम ना किमाट फोटड, मरण मीम श्रोट दीठु कार न छोटर, पगे छछोहउ दोटर, डीलइ जोर, कर्म हि शोर । मननउ कठोर, जाणे खा परउ चोर ।
२ इसके वाढ का विशेष—काठउ वाधउ, पोता नउ कमायउ त्लाउ । ३ कहिये सी वात, गणि धीर कहइ ए चोर अवदात |