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(१४) भाग्यवान
तसुताइ रूपइ कुलि वहद्द, सोनमा मोर ऊडइ मोन बेले राति विहार, पटउवे भूमि बहुरिय चीतविया पासा पडद, ऊघउ करता पाधरउ था लक्ष्मी बाहिरि मूसाविइ, उपरि परसह, इस दीहाडउ ||
(१५) पुण्यवंत
जसु तराइ प्रदक्षिणा वर्त्त शख ।
चिंतामणि रत्न फरस पाखाण, सोना तण्उ पुरिसउ ।
कोटीं वेध रम, काली चित्राचलि वेलि ।
चोटिया द्राम, नल तरणि हीरउ ।
कवडी पोतइ, साखिणी पढमिणी वेउ लक्ष्मी निधान कलस श्राणइ | लाखी कर दीवउ प्रज्वलइ, कोटिध्वज लहलहइ ।
जसु तराइ रूपइ कोलू वहइ, सोना ना मयूर उडइ । सोवने फूले राति विहाइ सपाल्य सोना पहिरियइ । पटउले भूमि बाहिरियइ, चीतविया पासा पड़ा । ऊधउ करता पाधरउ थाइ, लक्ष्मी वारणई लाखई । अनइ ऊपर वाडइं पइसइ, इसिउ दीहाइत ।
(१६) पुण्यवंत (२)
नाणे धनढ यक्ष तूठउ, नागे करि वेताल सेवावाहि पइठउ । नाणि करि कल्पद्रुम फलिउ, किरि काम घट श्रावी मिलिउ । किरि कामधेनु गृहाणि बाधी, किरि नवनिधि तीणि लाघी ।
किरि चिंतामणि रत्न हाथि चडिउ, किरि पूर्व भवभाग्य ऊघडिउ ।
अथवा कल्प वैलि घरी गराइ पइठी ।
अथवा महालक्ष्मी मूर्ति मले घरि पइठी । भवति भूरिभिः ॥
१- गृणामणि ।
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