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(१०६) बोलती छउड उतारइ, रीसई छोरू नई मारई । जइ को वारा, तउ साहमु तेहनइ विडारई । जण जण त्यु आफलइ, बोलती विसइ हाथ उछालइ । जाअइ खेत्र खलइ, घरि वित्रोड़ करि बाहिर मलइ । पूरी पापिणी, फूफ़्ती सापिणी । जे चालती कृवच्छ, साची अलच्छ । जीभइ जत्र छोलइ, सासू सुसरा नू नाखइ अोलइ । अगार तणी सउडि, विटइ सहू मुं टउडि । बोलता केस ऊभाशय, मनुष्य नासी घरे जाय । बिलाड मुखी, धणी नइ दुस्त्री। बगाई खाती, ... । गोडउ गिलइ, झाडे मुहडउ छिलइ । जाणे श्रारण नौ राख, छोरू नइ लागइ जेहनी चाख । पर मर्म चापह, पागल बोलतउ थरहर कापइ । जे जे चालतू पलेवण, एहनूं नाम न लेवणूं। जिवारई गृहस्थ नह "जोग, तिवारइ होइसी कुकलत्र तणउ सयोग । चालती चीतरी, ...। लावा लूतरी, किता कहू कूतरी । पुण्य द्वार तणी अागल, मोक्ष तणी भागल । जेह जीव नइ होह पापकर्म भारी, इसी सतापकारी तऊ सपजइ नारी । कहइ 'धीर' अणगारी।
इति दुष्ट स्त्री वर्णक ॥
४१ दुष्ट स्त्री (७) काली, मकाली! काणी, कोचरी । कुरूप, कुत्सित । काक जंघा, काकसरी। कुहाडि, कुलक्षिणी, सापिणी, पापिणी मुंत्रिणी, नरगिगी लावडी, बोबडी। सही, पडी।