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(६४ ) कोठा तणी पद्धति यत्र तणी श्रेणी । ढीकली तणी परंपग । खाई गढ़ । पाणी गढ़ । कटक तणउ गढ । बैरी तणो प्रवेश नहीं । हाथीया तणो ढो नहीं । पाखरीमा रहण नहीं । भेद संभावना नहीं । जिस्यु व मय घडिउ हुई। घणु कित्यु । ग्रेक का देवता रहि अगम्य । गढ प्राकार ॥ छ । ( स० २)
६६ गढ़ (३) गढ़ गरूअउ अनइ विसमउ। जीह तणउ पायउ पातालि पइठउ, पर्वत नई शृगि बइठ । उच्चस्तर पोलि, लोहमयकपाट, महाकाय भोगल । विजहारी तणी पद्धति, यत्र तणी श्रेणी। कुली तणी परम्परा, जल निभृत खाई तणउ दुर्ग। पर प्रवेश नहीं, हाथिया ढोउ नहीं, पाखरिया रहण नहीं । नीसरणी ठाउ नहीं, भेद सम्भावन नहीं। जिसिउ बज़ घटित विश्वाकर्मा निर्मापित । किं बहुना देवइ हुई अगम्य ॥५५ (सह १)
६७ आस्थान-मंडप (१) आस्थान मंडप, क्षोभ ऊपनउ, कवणु सुभट सग्राम रसिक हूतउ, भुंइ अाहणिउ, ऊठइ छइ, केऊ धसह छइ, केउ प्रलयकालु समान उंकार मेल्हइ छइ, अटहास्यु नीपजावइ छइ, केऊ वक्षस्थला परामारश छइ, केऊ खवा फुरकावइ छइ, के भुजाडडनिरहालइ छई, केऊ भ्रंकुटि ताडइ छइ, केऊ नेत्र अारक्त करइछइ, केऊ खडगि दृष्टि निवेसइ छइ, केऊ कटारइ हाथु घालइ छह, इणिपरि अास्थानु क्षुभियउ । ( पु० अ०)
६८ आस्थान सभा (२) पुरोहित । सेनापति । तंत्रपाल । दड नायक
श्री गरणा । वइगरणा | मध्यगरणा। देवगरणा । पाखंडली । धर्माधिकरणी ।