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निर्मल शीलवती, उज्वल गुण झलकती । लावण्य निधान, ग्रतःपुर प्रधान । निष्कलंक, कृत पाप पंक 1 सुकर्तव्य सज, सलज | विदित कार्य, पूजिताचार्य |
औचित्य चतुर ।
पाप कर्त्तव्य कातर, सकल लोक मातर ||६० || (स० १ )
३८ - राज्ञी - वर्णन (६)
सर्वं श्रुतेउरी माहि प्रधान, सर्व गुण निधान ।
लावण्य कूप, श्रुति स्वरूप | भर्तार नी भक्त, धर्म नइ विषइ रक्त । सुंदर गात्र, राजा नइ प्रेम पात्र | सर्वथा दूषित, शील गुणे भूपित । कमल नेत्र, पुण्य क्षेत्र |
सत्य गुणि कली, रूप गुण उर्वसी ।
सुवर्ण वर्गकात, दीर श्रावर देवागना सभ्राति ।
स्नेह कला रति, भारती सम मति ।
सौभाग्य हस तलाइ, कनक चूड़ि मंडित कलाई । सदा सन्ररी, कामदेव पूरी ।
त्रिभुवन तत्व माटी, अमृत बिंदु साटी ।
पुण्यती वाटी, तिरंग दाटी ।
रूपई रति निर्घाटी, न करई राटी ।
लावक, द्रावक, सावक ।
ऐरावण कुंभ विभ्रमाकार स्तन, त्रस्त हरणी लोचन -
मदन मुद्रावतार, प्रलंवित हार ।
क्षीण कटि, प्रति सुघट |
जेहनी मीठी वाणी, सगलै जाणी ।
रूपवंत माहि श्रधिकी वखाणी, घणूंन्युं इंद्राणी,
‘घीर' कहइ जे आगइ घडट ले आणइ पारणी ॥ . इति राज्ञो वर्णन || कु०