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( ५ ) १०० से अधिक वस्त्रों के नाम हैं ), कलशान्त प्रासाद वर्णन ( पृष्ठ ३६-४०), जिन मन्दिर (पृष्ठ ४८-७१), राजलोक, पौरलोक चक्रवाल ( पृष्ठ ४६ ) वस्तु पाल-तेजपाल विरुद ( पृष्ठ ५५), अास्थान मंडप वर्णन ( पृष्ठ ७२ ), अश्व सूची ( पृष्ठ ६२), समुद्र में प्रवहण भग का वर्णन ( पृष्ट ६७, इस प्रकार का एक अत्यन्त विशद वर्णन नायाधम्मकहा, अध्याय ६ में भी आया है)। इसी ग्रन्थ में सभा शृगार का भी एक सस्करण ५० पृष्ठो में प्रकाशित हुया है जिसकी सामग्री नाहटा जी ने ले ली है। उसकी प्रतिलिपि मवत् १६७५ में की गई थी। साडेसरा जी के तीसरे सग्रह वर्ण्य वस्तु वर्णन पद्धति में भी देशों (पृष्ठ १६५ ) की सूची और उनकी ग्राम संख्या महत्त्वपूर्ण है जिसमें भारत के बाहर के महाभोट, सिंहल, चीन, महाचीन देशों के नाम भी हैं। चौथे प्रकीर्ण वर्णक में १८ करों के नाम रोचक हैं। (पृष्ठ १७०)। पाचवें सग्रह का नाम जिमणवार परिधान विधि है जिसमें ३६ प्रकार के लड्डु, अनेक मिष्ठान्न भोज्य सामग्री एव लगभग २०० वस्त्रों के नाम हैं (पृष्ठ १८०-१८१)। यह प्रति १६७५ सवत् ( ई० १६१८) में जहाँगीर के काल में लिखी गई थी। अतएव मुगल काल के प्रारम्भ में जितने वस्त्र इम देश में वनने लगे थे और जो गहर से मगाए जाते थे उनकी बहुत ही बडी सुन्ची उस संग्रह में प्राप्त हो जाती है। यह सूची सभवतः किसी सम्राट के वस्त्र भण्डारी की सहायता से प्राप्त की गई होगी। साडेसग जी ने अपने संग्रह के परिशिष्ट १ में प्रयागदास नामक किसी लेखक के कपडाकुतूहल नामक ग्रन्थ का मुद्रण किया है जिसका एक नाम कपडा-बत्तीसी भी था । दूसरे परिशिष्ट का नाम ऋयाणक वस्त्र नामावली है जिसमें ३६० किगने की वस्तुओं के नाम. ६५ वस्त्रों के नाम और १४२ श्राभूषणों के नाम हैं। साडेसरा जी के वर्णक-समुच्चय के अन्त में अकारादि सूची नहीं है । सभवतः अथ के दूसरे भाग में वे उसे प्रस्तुत करेंगे। किन्तु उस ग्रन्थ में सकलित सामग्री गुजराती भाषा तक सीमित न होकर हिन्दी के विद्वानों के भी बहुत काम की है।
नाहटा जी द्वारा संगृहीत सभा-शृगार में ऐसी ही उपयोगी सामग्री का एकत्र संकलन हुआ है । इसके १, विभाग हैं । जो वर्य विषय के अनुसार इस प्रकार है
विभाग १- १-२८ देश, नगर, वन, पशु-पक्षी, जलाशय, नदी, समुद्र वर्णन।
- विभाग २-० २६-८६-राजा, राजपरिवार, मन्त्री, चक्रवर्ती, गवण, रानमभा, अास्थानमंडप, गज, अश्व, शत्र, युद्ध आदि का वर्णन ।