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________________ Ixvii 04 517 पुटम् पतिः अशुद्धम् शुद्धम् 415 शिरसि पौर्वान्नियमो पौर्वापर्यवनियमो 4166 वह्नय वह्वया 42020 मार्थयो मार्थयोः 425 स्थान स्थाने 431 शिरसि त्वोद्य चोद्य 444 9 द्रियाणिम् । न्द्रियाणि ; 463 22 कारा कारो 477 21 यौगद्या योगपद्या 4792 निरन्धे र्न रुन्धे 482 13 द्वेतिविष द्वेति-विष 495 शिरसि चाक्षुत्वं चाक्षुषत्वम् 5053 दुस्थः । दुस्स्थः । 517 शिरसि खादि खपुष्वादि 5173 (दिष्टे) (दिष्टम् ) 10 (इत्यत) (इत्येत) 525 6 एव; (एते) षां एव; ए (एतेषां 528 17 यमर्थ यमर्थःशिरसि त्वक्षेपे वायुताल त्वाक्षेपे वायुकाल 539 13 स्त्वीगीन्द्र स्त्वगिन्द्रि 539 17 ग्राह्यत्वा ग्राह्यत्व भावाददपि भावादपि 540 नस्यात् तदा न स्यात् । तदा 541 19 च्छदेना च्छेदेना 542 सजातयि सजातीय 16 (स्वात्म (नस्वात्म . 17 बह-- त्राह5445 तत्सृष्टः तत्सृष्टेः 544 पृष्ठात्परं 545-560 इत्यन्तस्थाने प्रमादात् 556-570 इति पतितमास्ति 566 17 द्रवत्वाम द्रवत्वम 535 21 "
SR No.010754
Book TitleTattvamukta Kalap and Sarvarthasiddhi with Ananddayini and Bhavapraksa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorD Srinivasachar, S Narsimhachar
PublisherD Srinivasachar, S Narsimhachar
Publication Year1933
Total Pages746
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size47 MB
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