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________________ अध्यात्मिक काव्य मे सूर जैमा गाम्मीयं, तुलगी जंगी व्यापनना, पीरोमी स्पष्टता एव प्रखरता तथा मोरा जमा माधुयं और तुगाराम जैनी मृदना सर्वत्र छलकती दृष्टिगोचर होती है। यद्यपि उनमे बिहारक्षेत्र मुस्यतया राजस्थान और गुजरात रहे, तथापि उनको फीति और प्रमिद्धि भारत के प्रान्त-प्रान्त में परिव्याप्त हो चुकी थी। सन्त मानन्दधन ने जन-परम्परा-प्रसिद्ध समस्त तीर्थ कगे मी मध्यात्मप्रधान स्तुति-सरचना की है। एक-एक तीर्य कर की एका-एक स्तुति में गायक और श्रोता यात्म-विभोर हो उठते हैं। सन्त आनन्दपन कल्पनाप्रधान नहीं, अपितु सहज भाव प्रधान कवि था। उसकी स्तुति और पदी में मयंत्र मान्तरम छलकता रहता है । उनके पदो का स्थायीभाव निवेद है। माथ्य की कसौटी पर कस कर देखा जाए तो माधुर्य तथा प्रमाद गुण प्रतिपद में प्रतिविम्यित दियाई देते हैं। अलकार-योजना भी यय-तत्र उपलब्ध होती है, परन्तु यह गौन है, मुखर नहीं हो पाई । कवि का उधर ध्यान ही नहीं था, उसका मुख्य लक्ष्य था-एक-मात्र शान्त-रस के परिपाक की ओर। शान्तरस के परिपाक मे तथा उसकी अभिव्यक्ति में आनन्दघन को पूर्णत सफलता मिली है। शान्त-रम के विभाव, अनुभाव, स्थायीभाव तथा संचारी-भाव वही सूवी के साथ रस को अभिव्यक्ति कर देते हैं। शान्त-रस वाच्य नही रहा, वह मवंत्र अभिव्यजित हुआ है। यही कारण है, कि आनन्दधन के अध्यात्मप्रधान काथ्य मे सर्वत्र भावो की मधुरिमा, शैली की प्राजलता तथा भाषा की गरिमा अपनी अभिव्यक्ति पाती रही। मेरे प्रेमी मर्वोदयविचारक मुनि श्रीनेमिचन्द्रजी ने सन्त मानन्दपन को चतुर्विंशति-स्तुतियो पर 'अध्यात्म-दर्शन' नाम से एक भाप्य लिखा है, जिसमें एक-एक स्तुति को स्पष्ट करने का सफल प्रयाम किया है। अभी तक आनन्दघन पर इतना विशद, इतना स्पष्ट तथा इतना मर्मस्पर्शी भाष्य किसी भी लेखक ने प्रस्तुत नहीं किया है। इसका समन श्रेय प्रबुद्ध विचारक गाधीवाद के व्याख्याता, अध्यात्मयोगी मुनिवर नेमिचन्द्रजी को है, जिन्होंने अथक परिश्रम करके अध्यात्मप्रेमी जनता के कर-कमलो मे एक अध्यात्मकमन ममर्पित कर दिया है। जिसे पा कर प्रत्येक पाठक तथा श्रोता को अमित आनन्द की भावानुभूति तथा रसानुभूति होगी। -उपाध्याय अमरमुनि वीरायतन, राजगृह (नालंदा)
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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