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३ सम्भवनाथ-स्तुति--
परमात्मा को सेवा
(तर्ज-रातली रमी ने रिहायो आविया रे, राग-गगिरि) पन्मात्मा के नाय अगण्ट नीति के बाद परमात्मा के मापान व निर्णय कन्ना गन्ममाधय के लिए पनिवार्य होता है मार्ग का निर्णय हो जाने पर ही परमात्मा की मेया भलीभांति हो सकती है। गिर नीमरे तीर्थग बी नम्भवनायभगवान् की स्तुति के माध्यम में परमात्म मेवा र रहस्योद्घाटन करते हा श्रीआनन्दवनजी लाने है---
'सभवदेव' ते धुर सेवो सवे रे, लही प्रभुतेवन-नेद । सेवन-कारण पहली भूमिका रे, अभय, अद्वेप, अखेद ।।
सम्भव०॥१॥
अर्थ
परमात्मा (परमशुद्ध आत्मा) की सेवा का गहरा रहस्य ममम कर सभी मात्मसाधक सर्वप्रथम सम्भवनाथदेव (वीतराग परमात्मा) वा योतगरपरमात्मा के देवत्व की सेवा करें। परमात्मसेवा मे कारणभुत पहली भूमिकाअवस्था के योग्य अभय, अद्वेष और अखेद ये तीन वाते हैं।
परमात्म-सेवा दयो ? पूर्वोत दो न्तुतियों में जिन प्रकार प्रथम आर द्वितीय तीथकर की न्तुति के माध्यम ने प्रीआनन्दघनजी ने परमात्मप्रीति और परमात्ममार्ग के दशन का रहस्य खोल कर रख दिया है, वैसे ही इन स्तुनि मे नीमरे नी कर श्री सम्भवनाथदेव की स्तुति के माध्यम ने परमात्मा की या परमान्मन्त्र की सेवा सर्वप्रथम क्यो करनी चाहिए ? परमात्म-मेवा क्या है और कैसे करनी चाहिए ? इन नवका विश्लेषणपूर्वक रहस्योद्घाटन किया है।