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________________ वीतराग परमात्मा के चरण-उपासक ४६३ जनदर्शन मे अपेक्षा से यह भी बताया है कि ज्ञेय के ज्ञानस्वरूप-स्वभाव है और विभाव मे कर्माश्रित पौद्गलिक देह मे भी, प्रतिक्षण बदलते हुए देह मे पर्यायें बदलती रहती हैं, इस कारण भेद दिखाई देता है। इस प्रकार की जैनमान्यतानुसार बौद्ध दर्शन को भी पर्यायाथिक नय (प्रमाण) की दृष्टि से देखा जाय तो बौद्धदर्शन सत्य है, यो मान कर इसे समयपुरुष के अग (हाथ) के रूप मे समझना चाहिए । मीमासादर्शन को वीतराग परमात्मा के अग का वाया हाथ माना गया है। मीमासा दर्शन के दो भेद हैं—पूर्वमीमासा और उत्तरमीमासा । पूवमीमांसादर्शन के नियमानुसार सस्थापक जैमिनी हैं, जिनका जीवनकाल ई० पू० तीसरी या चौथी शताब्दी मे माना जाता है। पूर्वमीमासादर्शन वेदो को ही सर्वस्व आधार मानता है । इस दर्शन का विषय मुख्यतया वैदिक कर्मकाण्ड है, जिसमे यज्ञादि कर्मकाण्ड द्वारा इस लोक और परलोक मे स्वर्गादि के सुखदुखादि प्राप्त करने का विधान है। इस प्रकार पूर्व-मीमासादर्शन अत्यन्त सूक्ष्मविचार करके वेद के शब्दो पर से ही समग्र आध्यात्मिक जीवन की व्यवस्था का निरूपण करता है। उत्तरीमीमामा का दूसरा नाम 'वेदान्तदर्शन, है वह मुख्यतया ज्ञानवादी और आत्मवादी है। उसके ऋभिक व्यवस्थाका बादरायण (व्यामजी) हैं, जो ई० पू० तीसरी या चीयी शताब्दी मे हुए माने जाते हैं। इसके मुख्यग्रन्य उपनिषद् हैं, ब्रह्मसूत्र है, जिन पर आद्यशकराचार्य ने व्यवस्थितरूप से भाष्य लिखे हैं। इस दर्शन को व्यवस्थितरूप से प्रस्तुत करने का श्रेय भी आद्य शकराचार्य जी को है। वेदान्तदर्शन मानता है कि प्रत्येक पदार्थ व्यष्टि से पृथक्-पृथक होते हुए भी समष्टि से एकतत्वसूत्र मे - पिरोया हुआ है । वह एक. तत्व-ब्रह्मरूप है । ब्रह्य (आत्मा) एक है, वही सर्वत्र व्यापक है-एक. सर्वगतो नित्य विगुणो न वध्यते न मुच्यते' ब्रह्म (आत्मा) एक है, है, सर्वव्यापक है, नित्य है, गुणातीत है, बन्धन-मुक्ततारहित है । वेदान्तदर्शन के सामने जब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि तब फिर जगत् मे भिन्न आत्माएं दृष्टिगोचर होती है, इसका क्या समाधान है ? तब वह कहता है-एक ही आत्मा (ब्रह्म) प्रागिमात्र मे व्यवस्थित है, जैसे एक चन्द्रमा होते हुए भी जल मे अनेक चन्द्रमा दिखाई देता है, वैसे ही आत्मा एक होते हुए भी जलचन्द्र की
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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