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________________ वीतराग-परमात्मा के चरण-उपासक ४५३ मानसिक सन्तुलन को, अपने सम्यग्दर्शन की व्यापक सर्वभूतात्मदृष्टि को ताक मे रख कर जैनधर्म और दर्शन की मिट्टी पलीद करने लगेंगे । इसी कारण वीतराग के चरण-उपासक की कसौटी में योगी श्रीआनन्दघनजी की अनुभूति के स्वर फूट पड़े-पडदर्शनजिन-अंग भणीजे, न्यास षडग जे साधे रे, नमिजिनवरना चरण-उपासक पड्दर्शन आराधे रे ।" तात्पर्य यह है कि इस गाया मे वीतराग-चरण-उपासक की सभी कसौटियां आ जाती है। ___कई तथाकथित जिन भक्त यह तर्क प्रस्तुत किया करते हैं कि ऐसा करने से तो गुड-गोवर सब एक हो जाएगा, कहाँ वीतराग का शासन, धर्म या दर्शन और कहाँ ये क्षुद्राशय मत या दर्शन ! इन सबको एक ही पलडे मे रखना कैसे ठीक रहेगा ? क्या वीतरागभक्त, या सम्यग्दृष्टि के लिए अपना-पराया कुछ नही रहेगा? फिर दूसरी युक्ति यह देते हैं कि इन एकागी और एकान्तवादी मतो या दर्शनों को हम सच्चे दर्शन या वीतराग के अंग कैसे कह सकते हैं ? कदाचित् हम ऐसा कह भी दें तो वे लोग (विभिन्न दर्शनो के अनुयायी या मानने वाले लोग) तो अपने ही धर्म-सम्प्रदाय, मत-पथ या दर्शन को सच्चा और अन्य सवको झूठे मानते हैं, ऐसी दशा मे हम उन्हे जिनवर के अग कैसे कह दे ? कैसे उन्हें अपने दर्शन की तरह मान लें ? इसका समाधान यो किया जा सकता है, जिसे इस स्तुति मे आगे श्रीआनन्दघन जी ने स्पष्टरूप से द्योतित भी किया है कि वीतराग परमात्मा का उपासक सकीर्ण, राग-द्वेषवर्द्धक, ममत्ववर्द्धक दृष्टि का नहीं हो सकता। वह अपना सो सच्चा, इस सिद्धान्त के बदले 'सच्चा सो अपना' इस सिद्धान्त का हिमायती होगा । और इस सिद्धान्त की दृष्टि से वह सत्यग्राही होगा, जिज्ञासु होगा, नम्र होगा, जहां-जहां सत्य (सम्यग्ज्ञान) मिलता होगा, बिना किसी सकोच के छही दर्शनो मे जो सत्य निहित है, उसे नम्र बन कर अपनाएगा, उसकी दृष्टि अनेकान्त की स्पष्ट, उदार, व्यापक, सर्वा गी और सबको अपने में समाने की होगी। उसमे विचार-आचारसहिष्णुता होगी। जव ३६३ पाषण्ड-मतो का का समन्वय जैनधर्म और जैनदर्शन में किया गया है, तब इन छह दर्शनो का का समावेश करना, समन्वय करना कौन-सी बडी बात है ? परन्तु वीतरागप्रभु का चरण-उपासक सबकी जी-हजूरी करने वाला, सवकी हां मे हां
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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