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________________ ४३२ अध्यात्म-दर्शन है-'फरेगा सो भोगेगा', 'सर्वा क्रिया फलवती प्रसिद्धा' (सभी प्रियाएँ फल देनेवाली होती हैं) तव उनसे पूछा जाता है कि जब आप ये धार्मिक क्रियाएँ करते हैं अयवा आत्मा मन, वाणी और शरीर द्वारा स्थूल-सूक्ष्म क्रियाएँ करता नजर आता है, यह मेरा, आपा और सवका अनुभव है, तब यह वताइये कि इन कियाओ के फलस्वरूप पुण्य और पाप को कौन भोगता है ? इसी प्रकार वेदान्ती भी आत्मा को निर्गुण मानते हैं। निश्चयनय से तो जन-दर्शन भी आत्मा को ज्ञान-दर्शन-चारित्रमय एव अकर्ता मानता है. व्यवहार नय से कर्मों का कर्ता-मोका भी मानता है। परन्तु वेदान्ती तो आत्मा को अवन्ध मानते हैं । तव जप, तप, अनुष्ठान वगैरह क्रियाएं वे किसके लिए किम प्रयोजन से करते हैं ? आत्मा और क्रिया का सम्बन्ध क्या? और फिर उन क्रियामो का फल कोन भोगेगा ? पूर्वोक्त दोनों दार्शनिको के सामने इस प्रकार का प्रतिप्रश्न रखा जाता है कि वेदान्ती या साख्यो की इन क्रियाओ का फल कौन भोगेगा ? आत्मा तो कर्म वांधता या तोडता नहीं, फिर भी आपकी क्रियाएँ चालू हैं, ऐसी परस्पर असगत बाते क्यों करते है ? तव वे निरुत्तर हो कर रोप मे आ जाते हैं और मन मे कुढने लगते हैं। अत. प्रभो! इसका ययार्थ उत्तर आपसे मिलेगा, तभी मुझे सत्यतत्त्व की प्राप्ति होगी। ग्रह्म कत्ववादी फी दृष्टि मे आत्मा ब्रह्माद्वैतवादी कहते हैं कि जड और चेतन दोनो ही ब्रह्म (आत्मा) रूप हैं। इसी प्रकार पृथ्वीकायादि स्थावर तथा उसकायादि जंगम इन दोनों मे आत्मा की दृष्टि से समानता है। मारा चराचर जगत् ब्रह्म (आत्म) मय है। उनके सूत्र हैं-'एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म', 'सर्व खल्विद ब्रह्म नेह नानाऽस्ति किंचन' 'एक ब्रह्म द्वितीयं नास्ति' 'जने विष्णु स्थने विष्णुः विष्णु पर्वतमस्तके' (सारी सृष्टि में एक ही ब्रह्म (आत्मा) है, ब्रह्म के सिवाय और कुछ भी नहीं है । यह सारा चराचर जगत् ब्रह्म है, यहां नाना दिखाई देने वाला कुछ भी नहीं है। आत्मा एक है, वह सर्वत्र व्यापक है, नित्य है। इस चराचर मे सब कुछ ब्रह्म है और कुछ भी नहीं है । जल मे, स्थल मे और पर्वतशिखर पर भी विष्णु (शुद्ध आत्मा) है। इस प्रकार अद्वैतवादी की दृष्टि मे जड और चेतन, चर और अचर समस्त पृथक्-पृयक् जीवो का अस्तित्व नहीं है, तयैव जड 'का अस्तित्व भी
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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