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________________ ४१६ अध्यात्म-दर्शन सहवास की इच्छा हो, तब नपुमकवेद कहलाता है । इसी प्रकार पांचो इन्द्रियो के विविध विपयो, वस्तुभो या सम्मानादि की कामनामो का उत्पन्न होना इच्छाकाम है। किसी वस्तु, विषय या सम्मान आदि को प्राप्त करने लालगा मन को गुदगुदाने लगती है, मनुष्य इन्धात्री से व्याकुल हो कर उन्हे पूरी करने मे तन, मन, धन सर्वस्व लगा देता है, फिर भी बीमारी विघ्न, इन्द्रियनाश मादि कारणवश उसकी वे इच्छाए पूरी नही हो पानी । इन्छाए मनुष्य को व्याकुल कर देती हैं, उन्हे पूरी करने के लिए मनुष्य उतावला हो उठता है। एक इच्छा पूरी होते न होते, दूमरी आ धमकती है। फिर इच्छा पूरी न होने पर मनुष्य निराश और दुखी होकर कई बार आत्महत्या तक कर बैठता है। दूसरे की इच्छाए पूरी होते देख कर उसके प्रति ईर्ष्या, द्रोह और द्वेष का भाव मनुष्य के मन मे आ जाता है। अभीप्ट इन्छा की पूर्ति हो जाने पर भी उसके वियोग मे मनुष्य तडपता है, फिर उसे पाने की इच्छा बलवती हो उठती है, कनक और कामिनी ये काम के स्थूल प्रतीक हैं, जिसके लिए मनुष्य ने बडेवडे युद्ध किए, और पतगे की तरह अपने प्राणों को होम दिया। वीतराग प्रभु ने इन दोनो प्रकार के कामो को इसलिए मन से भी त्याग दिये कि ये आत्मा का बहुत बडा अहित करते है । जन्म-जन्म में प्राणी को ये रुनाते हैं, दुखी करते है, इनका गुलाम बना हुआ व्यक्ति अपने धर्म, अपना आत्मस्वभाव, अपनी नैतिक मर्यादा, अपनी विकास की सब बातें ताक में रख देता है । जिसमे मदनकाम ((वेदोदय) तो इतना प्रबल है कि बड़े-बडे साधको .. को पछाड़ देता है । वाहर से किसी प्रकार से उपलब्ध न होने या न हो सकने पर भी साधक मन ही मन उसे पाने की धुन मे उवेडवुन करता रहता है । आग मे घी डालने पर से आग शान्त होने के बदले अधिकाधिक भडकती है, वैसे ही काम को भोगने पर वह शात होने के बदले अधिक भडकता है । इसीलिए दशवकालिक सूत्र मे कहना पडा-'जो काम (दोनो प्रकार के काम) का निवारण नहीं कर पाता, वह श्रमणधर्म का कसे पालन कर सकता है ? वह पद-पद "कह नु कुज्जा सामग्ण, जो कामे न निवारए। ' पए-पए विसीयतो, सकप्पस्स वस गो॥ -दशवै० म. २ गा ?
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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