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________________ ४१२ अध्यात्म-दर्शन हास्यादि ६ नोकपाय प्रत्येक आत्मा का बहुत बडा अहित करते है, वीतराग प्रभु के भी ये शत्र बने छ । हास्य इन सबका अगुआ है। हंसी-मजाक कितना बड़ा नुकसान कर बैठती है, उसने मित्र भी किस प्रकार शत्र वन जाने हैं, और एक दूसरे के प्राण लेने पर उतारू हो जाते हैं, यह किसी से छिपा नही है । इमलिए हास्यकलाय आत्मार्थी के लिए त्याज्य है। रति भी दूपरा नोकपाय है, इससे व्यक्ति अनुकून पोद्गलिक पदार्य या पद, प्रतिष्ठा आदि मिलते ही मन मे प्रसन्न हो उठना है। इससे भी कर्मबन्ध करता है। इसी तरह तीसरा नोकपाय अरति है, जिससे व्यक्ति प्रतिफूल पदार्य, व्यक्ति वा पदादिपा कर घृणा कर बैठता है, घबरा जाता है। चौथा है-जोक, जिसमे प्रियवस्तु या व्यक्ति के वियोग में या अप्रिय के मयोग में व्यक्ति हायतोवा, मचाता है, अफसोस करता है, छाती-माथा कूटना है। इसके बाद का नोकपाय है-भय, जो आत्मा को अपने स्वभाव से बहुत जल्दी विचलित कर देता है । वह भी जव अपने दल बलसहित आता है, तो व्यक्ति की बुद्धि पर हमला कर देता है । इसके बाद छठा नोकपाय है-जुगुप्सा, इमे व्यक्ति किसी गदी, घिनौनी या सवित्र वस्तु को, शरीर को या जगह को देख कर घृणा में मुंह मत्रकोड लेता है। यह भी वस्तुस्वरूप की नासमझी का परिणाम है। परन्तु वीतरागप्रभु को क्षपकगज पर देखते ही ये भाग गए । ज्योज्यो प्रभु सयमस्थान पर चढ़ने गए, त्यो त्यो इन छहो को चले जाना पड़ा। कमजोर को देख कर तो ये उस पर हावी हो जाते हैं। परन्तु भगवान के आगे जब अनन्तानबन्धी मादि वडे बडे दिग्गज हार मान कर चले गए तो इन वेवारों की क्या बिमात थी। इनका चले जाना भगवान के लिए शोभारूप ही हुआ। प्रभो । आपका यह अद्भुत तेजस्वी स्वभाव देख कर मुझे भी यह प्रेरणा मिली है कि मुझे हास्यादि ६ दोपो से सावधान रहना चाहिए, इहें जरा भी मुंह नहीं लगाना चाहिए। आप मेरे आदर्श हैं, इसलिए मुझं मी आपकी तरह गजगति पकड कर इन नोकपायो पर विजय पाना चाहिए। इसके बाद श्रीआनन्दघनजी चारित्रमोहनीय क्रम के दिग्गज सुभेटो को भगवान् के द्वारा पराजित करने की कहानी लिख रहे हैं
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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