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________________ ३४८ अध्यात्म-दर्शन की वाणी विविधसूत्रो मे यत्र-तत्र विद्यारी हुई मिलती है। परन्तु परमात्मवाणी सिद्धान्त मे अविरुद्ध है , और उन्ही के मुग से नि मृत बचन । यही कारण है कि इन्हें सुन कर आत्माराम अत्यन्त भावुतावा हो पर यान्निनाय प्रन के प्रति आभार प्रकट करता है। क्योकि उगे यह जारभ्य नाग मिला, जो सैकडो जन्मो मे भी नहीं मिल सकता। शान्तिनाय प्रम फो शान्ति के दर्गन से निस्तार पहला आभारवचन मात्मा मे रमण करने वाला आलायर्थी एवं मानवी यह प्रगट करता है कि शान्तिनाय प्रमो । जाप के नाम में ही कोई जादू है, जिसने मेरी आत्मा (भावान्त करण) मे गालि के विविध उराय मधुरित हुए। मेरी बुद्धि आपको शान्तिस्वरूप का नम्यग्दर्शन पा कर नृप्त ही उठी । मेरी मात्मा वर्षों से शान्ति के सम्बन्ध में मिथ्यादर्शन से ग्रस्त थी, नासारिक पदार्थों या विविध कामनाओ की पूर्ति में ही शान्ति की इतिश्री मानती आ रही थी, परन्तु वह कल्पित शान्ति मिथ्या, क्षणिक और आभासमाय निकली। उससे अगान्ति ही वढी। किन्तु अब आपने जो बाध्यात्मिक शान्ति के भून दिये हैं, उनमे मुझे कही धोखा होने वाला नहीं । ये शान्ति के ठोस एव ग्यायो उपाय है। अत शान्तिनाथप्ररूपित शान्तिदर्शन पा कर मैं वास्तब मे ममारमागर ते तर गया समझो । जव किसी कठिन कार्य का सही उपाय मिल जाता है, तो आमा कार्य तो वहीं हो जाता है, फिर तो बम सक्रिय होने की देर होती है किट से काम बन जाता है। यही बात यहाँ आध्यात्मिक शान्ति के विषय मे है । शान्ति के जो नुस्खे वताये हैं, उनसे अब चटपट कार्य हो सकता है, सिर्फ गान्ति के उपाय के लिए जुटने की देर है । शान्तिदर्शन हो जाना भी बहुत दुष्कर कार्ग था, वह अत्यन्त आमान हो गया, इसलिए एक बहुत ही पेचीदा प्रश्न हल हो गया। शान्ति दर्शन में कार्यसिद्धि दूसरा अम्ल्य लाभ गान्तिनाथ प्रभु के चरण में वह हुआ कि शान्ति के कारण पहले सारे किये कराये काम बिगड़ जाते थे । कार्य बनने में देर लगती है, विगडने मे नही । जितने भी सासारिक या तथाकथित शान्तिवादी मिलते ये या मिले, वे सब ऊपर-ऊपर मे शान्ति का रास्ता बता देने थे, जो आगे चल कर वद हो जाता। क्योकि उस तयाकथित मार्ग में अनेक कठिनाइयां, विघ्न अडचने और सासारिक स्वार्थ आ कर मड जाने और वे सान्ति को चौपट कर,
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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