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________________ २६२ अध्यात्म-दर्शन कर बसी हुई है। वह ससार के विषय-करायरूपी पंक में उत्पन्न होने वाले कमल (बाह्य वैभव) को मल (रागद्वेषादि-मलयुक्त), अस्थिर एवं पामरम्बमार वाला देसकर छोड़ देती है । अथवा कमल को मलयुक्त फीचट में पैदा हुए देख कर अपने अज्ञान और ममत्व के कारण नाशवान वाघ सम्पति को ही वास्तविक लक्ष्मी मान कर पामर बने हुए देश कर उस अस्थिरम्यान पो भौतिया लक्ष्मी छोड़ देती है। भाप्य परमात्मा के चरण-दर्शन का प्रयोग वीतराग परमात्मा के पूर्वोत्तरीति से दर्शन के लिए उग्रन नाधक गो मांप्रथम उनके चरण के दर्शन क्यो करने चाहिए? मका प्रयोजन बताते हुए श्री भानन्दघनजी वीतरागपरमात्मा के चरणकमल का महत्व बताने है। निश्चयदृष्टि से परमात्मा का चारियरूपी चरण ययायात होता है, जिसमें रागटेपादि या घातीकर्म आदि किसी प्रकार का मैल नहीं होता और वह चरण (चारित्र) चचल नहीं होता, एक बार प्राप्त हो जाने के बाद फिर वह जाता नहीं है । स्वभाव मे सतत अविछिनम्प से रमण के कारण वह स्थिर होता है। परमात्मा के उम चारित्रल्पो पूर्ग शुद्ध, (ग्गेहादिमलरहित शुद्ध) स्थिर परिणाम वाले, चरणरूपी कमल को देख कर फेवल (अनन्त) ज्ञानादिवतुष्टयरूपी लक्ष्मी वहां सदा के लिए वम गई है । भौतिपालकमी भी अपना बस्थिर और कीचड वाला स्थान तया अपने पर होने वाले अज्ञान, और मोहममत्व के कारण पामर समज कर छोड देती है। ध्यवहारदृष्टि से प्रभु के चरणकमल को निर्मल (पकरहित) मार स्थिर देख कर लक्ष्मी वही निवास कर लेती है । इस कारण प्रभु अपनी नान-दर्शनचारित्र की सम्पदा मे इतने लीन है, कि वह सम्पत्ति आपको छोड़ कर अन्यत्र कही जाती नही । इसी कारण आप सतत आत्मानन्द-मन्त रहते हैं। कई धनवानो के पैर मे पद्म होता है, वे जहाँ भी जाते हैं, वहाँ आनन्द ही आनन्द होता है। यही नहीं, ऐसे व्यक्तियो की महिमा और यशकीर्ति सर्वत्र फैल जाती है । प्रभु वीतराग के चरणो मे भी पद्म होता है। इसलिए उनके लिए भी ऐमा कहा जा सकता है कि उनके चरणो मे लदमी लीला करती है, भाट
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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