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सध्यात्म-दर्शन
परिपह-उपमर्ग (कप्ट) देने वाले देव, मनुष्य गा नियंत्र जादि शिगी पर जग भी, गन से गी क्रोध नहीं करने ।
इस प्रकार के अनेक जाश्चर्यजनक गुणत्रिपुटिया परमात्मा में घटित हो सकती हैं। इन विनिय-मिग गियो का रहस्य जोर अनुभव अनुभवी बाधन गुरु से जान लेने चाहिए ।
सारांश श्रीआनन्दधनजी ने श्रीशीतलनाथ तीथकर की स्तुनि के जरिये परमात्मा मे उपतब्ध विविध, विचित्र एब आश्चर्यजनक गुण-विमगियों की सगति विना है, जिसमे आत्मा इन और ऐगी ही अन्य गुणत्रिपुटियो वे चिन्तन-मनन गे परमात्मगुणो की ओर रातन आगापित एव तन्गय हो कर अन्त में आनन्दधनमय परमात्मपद या मोक्षपद की प्राप्ति कर लेता है । मानवजीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि परमात्मा के गुणों में एकागनापूर्वक निन्नन में ही होती है।
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