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________________ २०२ अध्यात्म-यान प्राप्ति के लिए विविध रूप में अध्ययनाय करना होता है । गनिए भावजा भी असंख्य प्रकार की है। भव्यात्मा जब भी किसी गुण की प्राप्ति के लिए गुज्यचरणों में विगी भी प्रकार में निवेदन गारना है, और सपनुनार नप्रिय होने का प्रयत्न करता है, जब उस भावपूना गे उगमे दीपि, दुख और दुर्गनि नष्ट हो जाते है। जैसे कि एक जैनाचार्य ने कहा है ... 'वीतराग-पन्मात्मा की पूजा करने में उपनगां का भय हो जाता है, विघ्नरपी बेलें कट जाती है, मन प्रसन्नता मे भर जाता है। ____ यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि जर मनुष्य किनी चिन्ता, विपत्ति, पष्ट या अनिष्ट वातावरण मे घिरा होता है, तब यदि किनी नर्थ व्यक्ति का उगे आश्वासन मिल जाता है, या वह फिनी समर्थ व्यक्ति की मेगा में मनग्न हो जाता है अपवा किमी उच्चगुणी पर विश्वास रख कर उसकी आगधना करने मे लग जाता है अथवा किसी विशिष्ट गुणी में गुणो को प्राप्त करने की उगे प्रेरणा मिल जाती है और उस पर विश्वास रख कर उनके आदेग-निर्देश में वह माधना करता है, तो स्वाभाविक ही उसकी वह चिन्ता, विपत्ति, पट या अनिष्ट परिस्थिति समाप्त हो जाती है, उनको व्यथित करने वाले जलजलूल विचार ममाप्त हो जाते हैं और उसका मन आश्वल, विश्वस्त और नमाहित एव नमाधिस्थ हो जाता है। नाथ ही परमविस्वन्नपुग्पो पर विश्वाम ग्यु कर अपने पापकर्मों का त्याग करने और और अहिंसा-सत्यादि घमो का आचरण करने से उसके दुर्गति के द्वार बंद हो जात है, भद्गति और मुक्ति के द्वार खुल जाते है। यही बात परमआराध्य वीतरागपरमात्मा की नेवा, भक्ति, उपासना और भावपूजा के सम्बन्ध म समझनी चाहिए। इसी दृष्टि से परमात्मा की भावपूजा में दुर्भाग्य और दुर्गति के नष्ट हो जाने की बात कही गई है । क्योकि कापटरहित हो कर परमात्मा के सम्मुख आत्मसमर्पण करने मे ही परमात्मा की अखण्ड भावपूजा होती है, जिनका तात्कालिक फल चित्त की प्रसन्नता है, यह प्रथम तीर्थकर की स्तुति उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥
SR No.010743
Book TitleAdhyatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandghan, Nemichandmuni
PublisherVishva Vatsalya Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Worship
File Size21 MB
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