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________________ ॥ पञ्चमो भवो ॥ -- - do अत्यि रहेव जम्नुहौवे दौवे भारहे वासे कापन्दी नाम नयरौ; जौए समुद्दढेमा विय पायगाहालात्रो परिहारो, पम्वयाजणमणो विष परपुरिमालाणिनो पागारो, धरिणहरकन्दराई विथ मौहवालयसमडामिया । दवारतोरणाई, मरयजलहरुक्केरा' विय धवक्षाभोथसन्दरा पामाया । अवि य दियहपियविरहखिनो जौष पत्रोमि कुलवहमत्यो । दूमिन्जर जालन्तरपडिएहि मिया किरणेहिं ॥ गुरुयणविणउजुत्तो पईयणवच्छलो सहाभिगमो । धमत्थसाहपाई जौ जणो गुणनिही वसर ॥ तौए प्रण्डियमियभुयपरकमो सूरतेत्रो नाम राया । जंमि रणवामरेसं विमालवंसंमि वियडकउयंमि । प्रत्यधरारमिहरे व सूरतेत्रो परिकलित्रो ॥ सम्म च मयसम्र पहाणा रुवि व कुसमचावरिण १५ सौसावई नाम भारिया। तम्म राहणो रमौए मह विमय सहमणुहवन्तरमा परबतो कोर कालो । D. रा
SR No.010741
Book TitleSamraicca Kaha Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi
PublisherAsiatic Society
Publication Year1926
Total Pages938
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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