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________________ १०] सहयो भवो। ९५६ जाणह य गोलमयं पाणवहालियप्रदिषदाणणं । मेडणपरिग्गहाण य विरई जा मन्वहा समं ॥ तह कोहमाणमायालोहरम य निग्गही दढं जो छ। खन्तीय महवनवमंतोसविचित्तमत्यहिं । खणलवपडिबुझणया' महामवेगफासण ता य । चित्तण निरौडेणं मेत्तौ वि य मध्वजीवेस ॥ एवं च सेविजणं धमं जिणदेमियं समौसमयं । सुगई पावन्ति नरा 'ठएनि मर दुग्गदवारं ॥ एसो उ मोलमो भणिो धको जिणेहि मवेति। मावय परमगुरूहि दजयजियरागदोमेहिं ॥ छ । भणद तवोमरो म बाहिरमन्तरमा य तवरम । जमणट्ठाणं कौरह असे सम्मानिमित्तं ॥ अणमण मूणोयरिया वित्तौमखेवर्णरमच्चायो । कायकिलेमो संलौणया य बन्झो तो होर ॥ पायच्छित्तं विणो वेयावच्चं तहेव ममात्रो। शाणं उम्मग्गो वि य अभिन्तरो तवा होर ॥ एवं चरिऊण तवं जौवा दहपारलोइयाई । पावेन्ति विमालाई करेन्ति दुककयं नह य ॥॥ एसो उ तवामदो धमो मंखेवत्री ममस्कात्रो । निसह एतो सुन्दर पर्ष पुण भावणामा । --- - -- - - - -- -- -- - .Bहिनि। १ B •पुपरेया। .D •मोलो।
SR No.010741
Book TitleSamraicca Kaha Vol 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHermann Jacobi
PublisherAsiatic Society
Publication Year1926
Total Pages938
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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