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स्मरण कला ५८
सज्जनो और सन्नारियो ! इस घटना के बाद उन्होने इस मन्दिर को अलकृत करने का कार्य प्रारम्भ किया कि आज यह इतना सुशोशित और पालादकारी बन सका है । यद्यपि इसमे अनेक दूसरो का भी योगदान है, पर मुख्य कार्य तो उन्होने ही किया है, इसलिए सम्मान की प्रथम अधिकारिणी तो वे ही है। बहुत बार ऐसा हो जाता है कि हम अपने घर के मनुष्यो या चिरपरिचत व्यक्तियो की क्षमता को नहीं पहचानते, पर जब वे ही व्यक्ति दूर जाकर अपनी अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन कर ससार मे प्रशसा पाते है, तब ही हम उनकी कदर करना सीखते है, यह एक बहुत ही खेदजनक बात है। इसलिए मैं प्रस्ताव रखती हूँ कि जव महारानी कल्पना कुमारी यहाँ पधारे तब बिना कोई दूसरी चर्चा किये उनका उत्साहपूर्वक सुन्दर स्वागत करना है ।
श्रीमती स्मृति देवी का यह वक्तव्य सुनकर सब शान्त हो गये, पर सशय देव से नहीं रहा गया । उसने खड़े होकर कहा किश्रीमती स्मृतिदेवी ने हमे जो कुछ कहा है, उसे हमने शान्तिपूर्वक सुना है और उससे हमारे मन मे महारानी कल्पना कुमारी के लिए वहुत सम्मान के भाव पैदा हुआ है, पर उन्होने इस महल को अलकृतसज्जित करने के सिवाय अन्य कार्य भी किये हैं। यदि उनके पराक्रम का निदर्शन प्रस्तुत किया जाए तो मैं मानता हूँ कि यहाँ विराजित सब सज्जनो और सन्नारियो को आनन्द होगा।
___ यह सुनकर श्रीमती स्मृतिदेवी ने कहा-यह बात मेरी अपेक्षा बुद्धिदेवी ही तुम्हे अच्छी तरह से समझा सकेगी। मैं उन्हे विनती करती हूँ कि वे इस विषय पर उचित प्रकाश डाले।
___ यह श्रवण कर बुद्धिदेवी खड़ी हुई और आकर्षक अभिनय करती हुई बोली-महान् अतिथियो । महारानी कल्पना कुमारी यथार्थ मे अद्भुत प्रभावशाली है। यदि उनका समग्र पराक्रम यहाँ प्रस्तुत किया जाए तो उत्सव उत्सव के ठिकाने रह जाए, इसलिए संक्षेप मे ही मे अपने विचार रख रही है।
"वाल्मीकि को सामान्य मनुष्यो मे से महाकवि बनाने वाली यह महारानी ही है। महर्षि व्यास, कवि कालिदास, कवि भवभूति,