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४४ ३ स्मरण कला
सकता है, तब उसके साधनो पर विचार करने की क्या अपेक्षा है ? पर प्रिय बन्धु ! यह प्रश्न यथार्थ नही है। 'शक्ति' के साथ साधनों का विचार भी अवश्य करना पडता है। हाथ मे तलवार चलाने की ताकत होने पर भी यदि तलवार ही नकली हो तो उससे क्या इच्छित कार्य सम्पन्न हो सकता है ? धन के द्वारा दूध, घी, अनाज और सब्जी खरीदी जा सकती है। पर वे खरीदी हुई वस्तुएं शुद्ध न हो तो? इसलिए शक्ति के साथ साधन की योग्यता (शुद्धता) का विचार करना भी आवश्यक है।
अपनी इन्द्रियाँ एक प्रकार से यन्त्रो के तुल्य है। यन्त्रों को यदि साफ न रखा जाए अथवा उनका उपयोग करने के बदले एक तरफ रख दिया जाए तो उन पर जग चढ जाता है और वे निकम्मे वन जाते हैं, उसी प्रकार इन्द्रियाँ रूपी यन्त्र भी यदि स्वच्छ न हो तथा उपयोग मे नही लिए जाते हो तो बेकार या बेकार के समान बन जाते है। जो वस्तु जितना काम देने के योग्य हो, वह उससे अनेक गुणा कम काम दे तो उसे निकम्मी' के बराबर ही काम न देने वाली समझनी चाहिए।
आँख मे कोई फुन्सी हो गई हो, या कोई रजकरण गिर गया हो अथवा कोई दूसरी प्रकार की क्षति आ गई हो तो उसके द्वारा तुम यथार्थ निरीक्षण की कैसे आशा रख सकते हो? इसीलिए निरीक्षण की सही आदत स्मरण-शक्ति को वेग प्रदान करने के लिए अत्यावश्यक है। .
___ कान मे मैल भरा हो, सूजन आया हुया हो या कोई दूसरी प्रकार की गड़वड हो तो तुम उसके द्वारा सही श्रवण की आशा नहीं कर सकते, जव कि वह श्रवण क्रिया, भाषा, सगीत और स्वरों को याद रखने का प्रमुख साधन है ।
नासिका मे श्लेष्म भरा हो, मल भरा हो या अन्य कोई प्रकार की खराबी हो गई हो तो क्या वह कार्य कर सकेगी? जब कि मात्र गध के द्वारा हम संकड़ो वस्तुप्रो को याद रख सकते है । जैसे कि पृथक-पृथक् जाति के इत्र, तेल, केसर, कस्तूरी, अम्बर,