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३४ स्मरण कला
यत्त चक्रमणं नाति देहपीडाकर भवेत् । तदायुर्वलमेधाग्निप्रदमिन्द्रियबोधनम् ॥
जो पर्यटन, शरीर को बहुत पीडाकारक न हो अर्थात् बहुत अधिक तकलीफ देने वाला न हो तो वह आयु, बल, बुद्धि और पाचन शक्ति का वर्धक होता है और
इन्द्रियो को प्रबुद्ध रखता है। (झ) फिर अनुकूल आसन करने चाहिये, उनमे शीपमन खास
करना चाहिए। दोनो हाथो की हथेलियो पर सिर को नीचा रखकर पग आकाश मे अधर रखे जाये, उसे शीर्षासन कहते है। यह आसन करने से मस्तिष्क को प्रचुर मात्रा मे रक्त मिलता है. जिससे मानसिक शक्तियो का
उन्मेष सम्यक् प्रकार से होता है । (ञ) फिर प्राणायाम करना । प्राणायाम अर्थात् प्राण का
आयाम, प्राण' की कसरत, अर्थात् प्राण को नियत्रण की शिक्षा। इस सम्बन्ध मे वृहदारण्यक उपनिषद् और
छान्दोग्य उपनिषद मे कहा है• "वाणी, अाँख, कान और मन इन सब मे प्राण श्रेष्ठ है इसलिए कि वाणी, आँख, कान और मन न हो तो प्राणी जी सकता है पर प्राण न हो तो प्राणी जीवित नही रह सकता।" तैत्तिरीय उपनिषद् (२-३) मे उल्लिखित है कि प्राण से ही देव, मनुष्य और पशु श्वासोश्वास लेते है।
___ अनुभवियो का अभिमत है कि- "शारीरिक परिश्रम करने वालो की अपेक्षा मानसिक परिश्रम करने वालो के प्राणतत्त्व का व्यय अधिक होता है, इसलिए मानसिक विकास के अभिलाषियो को प्राणायाम अवश्य करना चाहिए।
प्राण का मुख्य भण्डार मस्तिष्क मे स्थित ब्रह्म रन्ध्र मे, दिमाग मे और पृष्ठ वश के भाग मे आया हुआ है। उसका चेतना उत्पन्न करने वाले ज्ञान तन्तुओ के साथ