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स्मरण कला ३१
. (ग) उसके बाद प्रार्थना का आशय भावशुद्धि होना चाहिए।
इस प्रार्थना के अन्त मे निम्न श्लोक से सरस्वती की स्तुति करनी चाहिये। या कुन्देन्दु-तुषार-हार-धवला या शुभ्र-वस्त्रावृता, या वीणावर-दण्ड-मण्डितकरा या श्वेत-पद्मासना । या ब्रह्माच्युत-शकर-प्रभृतिभिर्देवै. सदा वन्दिता, सा मा पातु सरस्वती भगवती नि शेष-जाड्यापहा ।
अर्थात्-जो मोगरे के फूल, चन्द्रमा, हिम और मुक्ता हार के समान उज्ज्वल श्वेत है, जिसने शुभ्र श्वेत वस्त्र धारण कर रखे है, जिसके हाथ वीणा के उत्तम दण्ड से शोभित हैं, जो श्वेत कमल के आसन पर बैठी है, जो ब्रह्मा, विष्णु और शकर आदि के द्वारा सदा वन्दित है; वह अज्ञान का सर्वथा नाश करने वाली पूज्य सरस्वती
मेरा रक्षण करे। (घ) फिर हाँ ऐं ह्री ॐ सरस्वत्यै नम.' यह भारतवर्ष के
सिद्ध सारस्वत-मन्त्र का १०८ बार या उससे अधिक जाप करना। ऐसा माना जाता है कि यह जाप ११००० बार होने पर मन्त्र सिद्धि हो जाती है। अनुभव के आधार पर
भी इस मान्यता मे तथ्य जान पड़ता है। (ड) प्रात काल मे ही मल विसर्जन हो जाए यह उचित है ।
इस समय मे दस्त बराबर साफ हो जाए उस तरफ ध्यान देना चाहिए। अगर शौच बराबर नही होता हो तो भोजन मे उचित अदल-बदल करनी चाहिये । समय-समय पर ऐनिमा लेना अथवा रात्रि मे सोते समय ठण्डे पानी से मल-शुद्धि चूर्ण लेना चाहिये। इस चर्ण से एक दस्त बराबर साफ पा जायेगा । मल शुद्धि चूर्ण बनाने की रीति निम्नोक्त है-सुखाडी हरड २ तोला, सोनामुखी २ तोला, रेवद चीनी २ तोला, सैन्धव नमक दो तोला, सेचल नमक आधा तोला, काली मिरच आधा तोला, कुल साढे नौ तोला । इन वस्तुप्रो को अच्छी तरह देखकर लेना चाहिये तथा एकदम साफ करके बारीक कूट कर