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________________ श्री अरिहन्त परमात्मा के इन समस्त नामो एव उनके अर्थों मे मन लगाने से, प्राण पिरोने से, शक्ति केन्द्रित करने से जीवन मे अपूर्व उत्साह बल शुद्धि एव स्नेह प्रकट होता है, जो मोक्ष पुरुषार्थ मे प्रोत्साहन देता है; कर्म-बल को परास्त करता है, बुद्धि को शुद्ध करता है और जीवो को स्नेह प्रदान करने का प्रात्म-स्वभाव प्रकट करता है। नाम-अरिहन्त द्वारा समापत्ति श्री अरिहन्त परमात्मा के नाम, आकृति, द्रव्य एव भाव-इन चार निक्षेपो के आलम्बन से समापत्ति सिद्ध होने पर किस प्रकार परमात्मा का तात्त्विक दर्शन और मिलन हो सकता है, इस विषय मे आवश्यक चिन्तन करे । समस्त शास्त्रो मे प्रभु नाम की अचिन्त्य महिमा बताई गई है । आज भी समस्त प्रास्तिक दर्शन अपने-अपने इष्ट-देव का नाम-स्मरण करके अपना - जीवन धन्य मानते हैं। प्रभु का नाम-स्मरण प्रभु दर्शन का अत्यन्त सरल-सुगम उपाय होने से पावाल-वृद्ध सबको महान् उपकारी होता है । जैन दर्शन में 'श्री नमस्कार महामन्त्र' की शिक्षा सर्व प्रथम प्रदान की जाती है तथा प्रत्येक धर्म-क्रिया का प्रारम्भ उसके स्मरण से किया जाता है । उसका कारण यही है कि 'श्री नवकार महामन्त्र' समस्त सिद्धान्तो मे व्याप्त है, समस्त प्राणियो के समस्त प्रकार के पापो का समूल उच्छेद करने की क्षमता युक्त है समस्त मगलो मे उत्कृष्ट मगल है, समस्त प्रकार के भय हरने वाला है और स्वर्ग एव अपवर्ग (मोक्ष) के सुखो का मूल कारण है। इस मन्त्राधिराज श्री नवकार की विधि पूर्वक आराधना करने वाले व्यक्ति त्रिभूवन-पूज्य तीर्थंकर पद को भी प्राप्त कर सकते हैं । इस प्रकार शास्त्रो मे श्री नवकार की महिमा प्रदर्शित की गई है, वह समस्त महिमा प्रकृष्ट पुण्यवत श्री पच परमेष्ठी भगवन्तो के नाम-स्मरण की ही समझनी चाहिये। ११४ मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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