________________
इस प्रकार की भक्ति वचन-अनुष्ठान द्वारा अर्थात् श्री जिनाज्ञा के सम्पूर्ण पालन द्वारा उत्पन्न होती है ।
अत: परमात्मा-दर्शन-मिलन की लगन वाले साधक को वचन-अनुष्ठान द्वारा परमात्मा की परा-भक्ति सिद्ध करके आत्म-साधना मे अग्रसर होना चाहिये।
इस प्रकार अग्रसर होने वाला साधक परमात्म-कृपा का अधिकारी होकर प्रात्मा एव परमात्मा के भेद का छदेन करके परमात्म-मिलन के अपूर्व आनन्द का अनुभव करता है।
मिले मन भीतर भगवान