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पवित्र चरण कमलो से पृथ्वी को पावन कर रहे हैं, असंख्य देव उनकी सेवा कर रहे हैं । वे परमात्मा भी यदि तनिक कृपा करके किमी देव को आदेश दें तो उस देवी शक्ति के वल से भी मैं उन अपार करुणा-निधान परमात्मा के दर्शन प्राप्त कर सक् ...परन्तु श्री अरिहन्त परमात्मा भी इतनी कृपा नही करते।
सचमुच, वीतरागी प्रभु के प्रति किया गया राग भी एक पक्षीय होता है, जिससे रागी भक्त का नित्य शोषण होता है, उसे व्याकुल होना पडता है ।
चातक मेघ-वृष्टि की आतुरता से प्रतीक्षा करता है, जबकि मेघ को उसकी तनिक भी परवाह नही होती, इसलिये वह उसे तरसा-तरसा कर बरसता है और चकोर चन्द्र-दर्शन के लिये लालायित रहता है परन्तु चन्द्रमा उसकी प्रीति की उपेक्षा करके अमावस के गहन अन्धकार में विलीन हो जाता है।
इसी प्रकार से प्रभो ! आप भी भक्त की प्रीति और भक्ति की उपेक्षा करके भक्त से अलग ही रहते है । आपको कदाचित यह भय होगा कि यह भक्त मेरे सच्चिदानन्द पूर्ण मुख मे से कुछ भाग छीन लेगा, परन्तु प्रभो! इतने कृपण क्यो हो रहे हो ? मुझ मे इतनी शक्ति ही कहाँ है कि मैं आपके सुख मे से भाग छीन सकू परन्तु मै तो यह चाहता हूँ कि आपकी भक्ति के द्वारा मुझे ऐसी शक्ति प्राप्त हो कि मैं भी अपने सम्पूर्ण, शुद्ध प्रात्म-स्वरूप को प्रकट करके निजानन्द की मस्ती मे रम सक ।
भले प्रभो ! आप मुझ से दूर रहे, अपनी मनोहर, मन-भावन मुख-मुद्रा • के दर्शन भी न दें तो भी मेरे पास सचित भक्ति की चुम्बकीय शक्ति के द्वारा आपको आकर्षित करके मैं अपने मन-मन्दिर मे प्रतिष्ठित करूंगा और अपने विशुद्ध प्रेम के पवित्र बन्धन से आपको ऐसा बाँघुगा कि आप उसमे से कदापि निकल नहीं सकेगें।
हे प्रभो । प्रापका प्रत्यक्ष मिलन इस समय कदाचित् मेरे लिये दुर्लभ हो, फिर भी मेरे पास आपका पवित्र नाम रूप मत्र-देह विद्यमान है । मैं उसका आलम्बन लूंगा। भरे हुए महासागर मे बहता मनुष्य जिस अनन्य भाव
मिले मन भीतर भगवान