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________________ १२८ स्मरण कला अ+३. अ+ १ दोनो तरफ हो तो बिचली संख्या अ-४ होने की ही है, इसलिए यथार्थ मे तीन स ख्या याद रखने की है। दो ऊपर के छोरो की और एक मध्य की। उसके साथ यह याद रखना भी जरूरी है कि कुल स ख्या का एक भाग ही य है और उसके साथ ही मब संख्याएँ घटाने की है। अब यह वस्तु किस प्रकार याद रखनी, उसके लिए बुद्धि दौडाने की आवश्यकता है । तुम इस दिशा मे प्रयत्न करके देखो। मैंने स्वय इस समस्त समीकरण को याद रखने के लिए निम्नोक्त एक दोहा बनाया है पूर्ण चहै जो भद्रा तू हरिपद भज हरठाम ___ सुन हृदय समता धरी कर्णे गान तमाम तुम कहोगे कि इसमे तो अध्यात्म की बात है। 'यदि पूर्ण कल्याण चाहते हो तो हर स्थान मे. हरिचरण का भजन कर और हृदय मे समता धारण कर स सार मे चल रहे सर्व प्रकार के गान कानो से सुनलो। बात खरी है। पर उसके साथ उसमे ऊपर का समस्त समीकरण समाया हुआ है, वह इस प्रकार है पूर्ण अर्थात् नव और भद्र अर्थात् सर्वतोभद्र यत्र । यदि तुम्हे नव का सर्वतोभद्र यत्र बनाना हो, तो हर ठाम अर्थात् उसके हरेक खाने मे हरिपद की भजना कर हरि अर्थात् विष्णु और पद अर्थात् पैर। विष्णु के तीन पैर माने जाते है। इस कारण उनका एक पद कुल संख्या का भाग है। इसलिए तुम सब जगह पहले 3 लिखो और हमने अ स ज्ञा दी है, इसलिए हर खाने मे अ लिख डालो जैसे कि अ अ श्र अ अ अ अ अ अ अव हृदय मे समता स्थापित करनी है अर्थात् बिचली स ख्या मे कुछ भी परिवर्तन नहीं करना और कर्ण अर्थात् कोनों के खानो - इस प्रकार गान अर्थात ३ और १ (ग=३, न=१) की स्थापना करनी है। बस, समस्त समीकरण का सार इसमे बरावर श्रा जाता है । यह दोहा सरलता से याद रह जाए ऐसा है । क्यो कि उसमे एक प्रकार का भाव स लग्नता से गु था हुया है। भाव प्रतिवन्वित किया हुग्रा है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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