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________________ स्मरण कला १०७ इस तरह ५२ १६ ४४ १६ १७० ३१४ ६५ बनी । इस प्रकार सोलह अको की सख्या तुम सुगमता से याद कर सकते हो। अब तुम्हारे कुछेक मित्रो के टेलिफोन नबर लो। वे भी व्युत्क्रम मे ही ग्रथित होते हैं । १. रमणलाल जानी २८६४२ २. मणिलाल सुतरिया ४५१३६ ३. सी० फडके ३००८८ ४ अरदेशर कडाका * ६५४२१ यहा हरेक व्यक्ति का नबर बराबर याद रहे, वैसा करना है। उसमे नाम तो तुम्हे याद है ही, और टेलीफोन के नबरो मे पांच ही प्रक हैं, यह बात भी निश्चित है। इसलिए आगे की क्रिया निम्नोक्त करो(१) रमणलाल जानी _रमणलाल जानी ने पाठ छतरियां फाड़ी, उसका बिल बियालिस रुपये आये। रमणलाल के प्रारंभ का अक्षर अक मे २ जैसा है। पाठ का अर्थ है, ८ छतरियों का " ६ बियालीस का " ४२ दो, पाठ और बियालीस का बराबर ख्याल रहेगा तो छतरी मे से छह लेना या छत्तीस, यह भ्रम नही रहेगा। टेलीफोन के अक पाच ही है। इसलिए उसमे एक अक तो छह ही है । तुम रमणलाल की बार-बार छतरी फाडने की कल्पना करो और हाथ मे ४२ रु का बिल है, उसे पढकर पाश्चर्य चकित हो रहा है, इस प्रकार का उसका चित्र खीचो, तो जब भी रमणलाल जानी याद आयेगा, तब उपर्युक्त बात याद मा जाएगी, और उससे २८६४२ नबर बराबर याद आएंगे। (२) मणिलाल सुतरिया मणिलाल कानो से थोडा बहरा है । चार पाच वार कहे तब सुनता है ! उससे एक बार तो छत्तीस बार कहना पड़ा था।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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