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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी अपने इन्हीं गुणों के कारण बालक सोहनलाल कुछ ही मास में अपने अध्यापक तथा सभी सहपाठियों का प्रियपात्र बन बैठा। साथ ही वह अपने बुद्धिबल तथा अनेक सद्गुणों के कारण सफलता पर सफलता प्राप्त करने लगा। _ वालक सोहनलाल ने शीघ्र ही 'हिन्दी बाल शिक्षा' को समाप्त करके दूसरी पुस्तक पढ़नी आरम्भ की। कुछ ही वर्षों के परिश्रम के बाद उसकी हिन्दी तथा हिसाब में बहुत अच्छी गति हो गई।