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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी तक वियोग सहना पड़ा। अंजना सती ने अपने एक पिछले जन्म में अपनी सौत के लड़के को बारह घड़ी तक छिपा कर रक्खा था, जिससे उसे बारह वर्ष तक महा दुःख उठाना पड़ा। सोहनलाल-माताजी, हम बालक कभी तो हॅसी मखौल में एक दूसरे को बहुत रुलाते तथा कभी हैरान करते हैं, कभी किसी अन्धे की लकड़ी छिपा कर उसे दिक करते हैं, कभी किसी अपाहिज की नकल उतारते हैं तो क्या उसके लिये भी हमको महादु.ख उठाना पड़ेगा। माता- हां पुत्र, कर्म किसी का भी लिहाज नहीं करते। उनका फल तो सभी को भोगना पड़ता है। सोहन-अच्छा माताजी ! मैं आज से प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं हँसी मखौल में भी कभी किसी को दुःख नहीं दूंगा और न किसी को हैरान करूंगा। माता-शाबाश वेटा, तुमको ऐसा ही बनना चाहिये । यदि तुम अपनी इस प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहोगे तो अत्यधिक सुख पाओगे। इस प्रकार माता लक्ष्मी देवी अपने पुत्र सोहनलाल के ऊपर अपने धार्मिक जीवन का अमिट प्रभाव डालती जाती थी। उन्होंने अन्य मूर्ख माताओं के समान अपने लाल को केवल स्नान कराने, उसको सुन्दर वस्त्राभूषण पहिराने तथा नज़र से बचने के लिये काजर मुंह पर लगाने, भूख न होते हुए भी पौष्टिक पदार्थों को खिलाने आदि में ही अपने मातृकर्तव्य की इतिश्री नहीं समझ ली थी, किन्तु वह बालक को शिशु अवस्था , से ही स्थानक ले जाती, उससे सभी साधु साध्वियों की वंदना कराती, उसे मंगलीक सुनवाती, घर में साधु साध्वियों के आने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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