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________________ जन्म २४ हे अर्जुन ! जब २ धर्म का हास होकर अधर्म बढ़ता है तो मैं अपने आप को निर्माण करता हूं। इसका अभिप्राय यह नहीं है कि ऐसे अवसर पर कोई भगवान पृथ्वी पर आकर अवतार लेता है, वरन् इसका आशय यही है कि प्रायः महापुरुषों का जन्म किसी विशेष परिस्थिति के उत्पन्न होने पर ही होता है। जिस समय चारों ओर अशान्ति का साम्राज्य हो, प्राकृतिक नियमों में अस्तव्यस्तता आ गई हो, जनता में धार्मिक भावना इतनी कम हो जाये कि वह नहीं के बराबर हो जावे, धर्मात्माओं की संख्या घटते घटते अत्यन्त कम हो जावे, आपस में ऐसी फूट फैल जावे कि वह एक दूसरे के नाश का प्रयत्न विदेशियों के हाथ में खेल कर करने लगे तो ऐसी परिस्थिति में किसी महापुरुष का जन्म अवश्य होता है। आज से डेढ़ दो सौ वर्ष पूर्व भारत की परिस्थिति बहुत कुछ इसी प्रकार की थी। उस समय भारतवासियों के स्वत्वों को विदेशियों द्वारा पूर्णतया रौंदा जा रहा था। उनमें फूट देवी का ऐसा अखण्ड साम्राज्य था कि वह अंग्रेजों के हाथ में खेल कर देश की परतन्त्रता की वेड़ियों को दृढ़ बना रहे थे। यद्यपि उन दिनों कई ऐसे महानुभाव भी थे जो भारत का गौरव बढ़ाने का यत्न किया करते थे, किन्तु उनको सर्वप्रथम अपने स्वदेश बन्धुओं के ही विरोध को सहन करना पड़ता था। इस प्रकार के सत्व सम्पन्न भारतीय अपने स्वत्व का बलिदान करने पर भी देशद्रोहियों की आंखों में कांटे के समान चुभा करते थे। इस विकट समय में पञ्जाब में वह पञ्जाबकेसरी महाराजा रणजीतसिंह राज्य करते थे, जिन्होंने अपने कार्यों से भारत के गौरव को बढ़ाया था। उनका राजमुकुट संसार प्रसिद्ध कोहनूर हीरे से सुशोभित था। उनके राज्यकाल में सम्बडियाल
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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