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प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी एकता के लिये प्रयत्न अजमेर के अखिल भारतीय साधु सम्मेलन का वर्णन इन पंक्तियों मे पीछे किया जा चुका है। उसमें स्थानकवासी जैन धर्म की प्रायः सभी सम्प्रदायों के मुख्य मुख्य प्रतिनिधि मुनिराज उपस्थित थे। इस सम्मेलन के अवसर पर अग्रगण्य मुनिराजों ने जैन समाज के उत्थान के लिये तथा नान दर्शन, चारित्र की वृद्धि के अर्थ विचार विनिमयपूर्वक बंधारण करके संगठन का बीज बोया था, जिसे स्वर्गीय शतावधानी मुनि रत्नचन्द जी महाराज तथा पूज्य श्री काशीराम जी महाराज ने सींचा था। स्वर्गीय पूज्य श्री जवाहरलाल जी महाराज ने इस सम्मेलन में एक वर्द्धमान संघ योजना उपस्थित की थी, जो अब तक सब के कान मे गूंज रही थी।
अजमेर सम्मेलन के पश्चात् अखिल भारतवीय श्वेताम्बर जैन कांफ्रेंस ने अपना अधिवेशन घाटकोपर मे किया, जहां शतावधानी मुनि पडित रत्नचन्द जी महाराज, पूज्य श्री. काशीराम जी महाराज, सुनि ताराचन्द जी, मुनि सौभाग्यमल जी तथा मुनि किशनचन्द जी महाराज ने एकत्रित हो कर 'वीर संघ' की योजना बनाई। इस प्रकार स्थानकवासी जैन समाज को संगठित करने की भावन चलती रही और धीरे धीरे प्रगति भी करती रही।
सन् १९४८ मे जैन गुरुकुल व्यावर के इक्कीसवे वार्षिकोत्सव पर श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कांफ्रेस की जेनेरल कमेटी का अधिवेशन भी हुआ। इसमे गुरुकुला की पुनीत भूमि मे 'संघ ऐक्य' को मूर्त रूप देने का प्रस्ताव पास किया गया। इस प्रस्ताव मे यह निश्चय किया गया कि स्थानकवासी सम्प्रदाय के विविध प्राचार्यों के सहयोग से इस योजना को मूर्तरूप