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________________ महाप्रयाण ३६४ "विमान बनाने का उत्तरदायित्व उन्हें दिया जावे।" . इस आग्रह को मान लिया गया। इस पर लाहौर वालों ने एक ऐसा अद्भुत अव्य तथा सुन्दर विमान बनाया कि राजों महाराजाओं को भी ऐसा विमान नसीब होना कठिन है। इस विमान को बनाने के लिये देश के सर्व श्रेष्ठ कारीगरों को एक सहस्र रूपया मजदूरी दी गई थी। सारा विमान सोने का बना हुआ दिखलाई देता था । उसमें ऊपर चांदी के छत्र लगे हुए थे। विमान को लगभग एक बजे दोपहर उठाया गया। उसके साथ असंख्य जनसमुद्र था । शव यात्रा का जुलूस अमृतसर के गुरु वाजार, साबुनिया बाजार, कटड़ा अहलूवालिया तथा लोगड़ दर्वाजा आदि नगर के सभी मुख्य २ बाजारों में से निकलता हुआ स्मशान की ओर बढ़ना जाता था। पूज्य श्री के शव को विमान के अन्दर लम्बा लेटाया गया था । उन का मुख खुला था और उस पर मुख-वस्त्रिका बंधी हुई थी। उनके ऊपर अनेक दुशाले पड़े हुए थे। शव यात्रा के मार्ग में स्थान स्थान पर हिन्दुओं तथा मुसलमानों सभी ने सबीलें आदि लगा रखी थीं। कहीं ठण्डे जल का, कहीं शर्बत का तथा अनेक स्थानों पर लस्मी पिलाने का प्रबन्ध था। पान इलायची की खातिर को तो शव यात्रा वालों को संभालना कठिन हो रहा था। जुलूस ज्यों ज्यों आगे बढ़ता जाता था, पूज्य महाराज के शव पर अधिकाधिक दुशाले पड़ते जाते थे । स्थान स्थान पर केवड़ा तथा गुलाब की वर्षा की जा रही थी। कटड़ा अहलूवालिया में तो कई अलैनो ने भी उन पर दुशाले डाले। शव यात्रा के जुलूस में लगभग एक लाख की भीड़ थी। इस समय अमृतसर के
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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