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________________ ३८० प्रधानाचार्य श्री साहनलाल जी "खबरदार जो आगे कदम बढ़ाया।" इस पर वह कुछ सहर गया और आगे न बढ़ कर क्रोध में भरा हुआ अपने और सिपाहियों को बुलाने गया। जब वह नगर में आया तो जैन विरादरी से यह समाचार जानकर पुलिस कप्तान ने संतों के साथ दुर्व्यवहार करने के कारण उसको बहुत फटकार पिलाई । कप्तान ने उसको आपसे क्षमा प्रार्थना करने को भी विवश किया। ___ xxxx यह पीछे बतला दिया गया है कि पूज्य श्री के कई संत बड़े भारी तपस्वी थे। तपस्वी मुनि गणपतरायजी महाराज तो बड़ा कठोर तप किया करते थे। वह ज्येष्ठ आपाद में दो २ तीन तीन घंटे तक धूप से तप कर लाल हुई सीमेट की छत पर लेट कर तप किया करते थे। उन्हे वाक सिद्धि भी थी। पसरूर, निवासी भगवान दास नामक श्रावक की वहिन को एक ऐसा रोग था कि अनेक इलाज करने पर भी वह अच्छा नहीं हुआ। तब किसी ने उस को बतलाया ___"जिस समय तपस्वी मुनि गणपतराय जी महाराज धूप मे तप करके उठे तो उनके पसीने के पानी को अपनी बहिन के शरीर पर लगाओ।" उसने इस कार्य को करने का निश्चय कर लिया, और अगले दिन कपड़ा तथा कटोरा लेकर उस स्थान के पास ठहर गया, जहां मुनि गणपतराय जी महाराज तपे हुए सीमेट की छत पर तप करते थे। जब वह तप करके उठने लगे तो भगवान दास ने भूमि पर गिरे हुए उनके पसीने को वस्त्र में
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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