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________________ मुनि शुक्लचन्द्र जी की दीक्षा ३२५ नाहड़ से आप अपने गांव दडोली आ गए। अव श्राप रातदिन इस चिंता में रहते थे कि हुड़ियाना के इस सम्बन्ध को किस प्रकार तोड़ा जावे ? शुक्लचन्द्र जी की माता महताब कुवर महेन्द्रगढ़, जिला पटियाला की बेटी थी। वहां की एक अन्य अग्रवाल लड़की भी दड़ौली मे व्याही थी। अतएव अपनी माता के नाते से शुक्लचन्द्र जी उसको मौसी कहा करते थे। वह भी आपको अपना भानजा मान कर आपकी बहुत खातिर किया करती थी। उसके लड़के के पास एक ऊंट था। एक बार शुक्लचन्द्र जी ने उस मौसी के लड़के से प्रस्ताव किया कि ऊंट पर चढ़ कर कुछ सवारी की जावे । अस्तु ऊंट तय्यार कर लिया गया और यह तथा ऊटवान दोनों उस पर बैठ कर गांव से बाहिर चले। कुछ दूर जाने पर आपने ऊंटवान् से हुड़ियाना चलने का प्रस्ताव किया। हुड़ियाना भी दड़ौली से कुछ अधिक दूर नहीं था । अस्तु आप कुछ ही घंटों में हुड़ियाना जा पहुंचे। गांव में प्रवेश करने पर आपको एक वृद्धा मिली। आपने उससे प्रश्न किया शुक्लचन्द्र जी-मां जी ! इस गांव की किसी लड़की की सगाई दड़ौली मे हुई है ? बुढ़िया-हां, हुई तो है। पहिले उस लड़की की सगाई नाहड़ मे हुई थी। बाद में लड़के के पिता मर जाने पर उन्होंने वहां से सगाई छुड़ाकर उसकी दूसरी सगाई दडौली में की। बुढ़िया बेचारी को क्या पता था कि पूछने, वाला स्वय ही वह लड़का था, जिसके साथ उस लड़की की सगाई हो चुकी
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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