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________________ शास्त्रार्थ नाभा २६७ राजा साहिब ने उनके प्रश्नों को सुन कर उनसे कहा "देखिये बाबा जी ! यदि स्थानकवासी जीत गये तो तुमको मुहपत्ति (मुख वस्त्रिका) जो तुमने हाथ में ली हुई है, मुह पर बांधनी पड़ेगी।" बल्लभ विजय जी ने नाभा नरेश की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। इसके पश्चात् नाभा नरेश ने भाई तारासिंह से एक पत्र लिखवा कर उसे दो पंडितों के द्वारा पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज की सेवा में भेजा। उन दोनों के नाम पंडित वासुदेव तथा श्रीधर जी थे। श्री पूज्य महाराज ने उक्त पत्र को पढ़ कर दोनों पंडितों से कहा "हम बल्लभ विजय के साथ स्वयं शास्त्रार्थ करना उचित नहीं समझते, क्योंकि वह कोई माननीय आचार्य या विद्वान नहीं है। अतः हमारी ओर से उनके साथ हमारे पोते शिष्य स्वामी श्री उदयचन्द जी महाराज शास्त्रार्थ करेंगे।" यद्यपि मुनि श्री उदयचंदजी इस समय नाभा में नहीं थे, किन्तु वह श्री पूज्य महाराज का संदेश पाकर नाभा जा पहुंचे। शास्त्रार्थ ज्येष्ठ बदि चतुर्थी संवत १६६१ से नाभा नरेश के ज्ञानगोष्ठी भवन में प्रारम्भ हुआ। इसमे स्वयं महाराज हीरासिंह और दूसरे भाई कहानसिंह, पं० श्रीधर जी तथा वावा परमानन्द जी आदि प्रतिष्ठित विद्वान उपस्थित रहते थे। ___ शास्त्रार्थ का मुख्य विषय मुखवस्त्रिका को बांधना अथवा न बांधना था। बीच बीच मे मूर्तिपूजा, पात्र उपकरण की मर्यादा तथा शुद्धि की चर्चा भी विस्तार के साथ की जाती थी।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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