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________________ गणि उदयचन्द जी का सम्पर्क २६६ कर पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज तथा मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज अत्यन्त प्रसन्न होते थे। इस शास्त्रचर्चा आदि का बहुत कुछ उत्तरदायिव मुनि उदयचंद जी ने ही ले रक्खा था। यहां गणेशीलाल नामक एक संजेगी ने संबेगियत को छोड़ कर पूज्य महाराज मोतीराम जी की शरण ली। मालेरकोटलो चातुर्मास के समय आपने एक मुसलमान को भी सम्यक्त्व धारण कराया, जिसका वर्णन आगे किया जावेगा। ___ मालेरकोटला का चातुर्मास समाप्त होने पर श्री विजयानन्द सूरि (आत्माराम) जी ने लुधियाना और जालन्धर होते हुए होशियारपुर जिले के अन्तर्गत मियानी, टांडा, उरमड़, श्रेयापुर आदि क्षेत्रों की ओर विहार किया। यह सभी क्षेत्र स्थानकवासी थे, जिन्हें आत्माराम जी अपने प्रभाव में लाना चाहते थे। उनके साथ पञ्चीस संबेगी साधुओं का पूरा दल था। आत्माराम जी के इस विहार के सम्बन्ध में स्थानकवासी मुनि संघ में भी विचार विमर्श किया गया। मुनि उदयचंद जी महाराज ने मुनि सोहनलाल जी से प्रार्थना की "मुझे उनका मुकाबला करने के लिये उधर जाने की अनुमति दी जावे। आपने बहुत कुछ कार्य किया है। अबकी बार यह सेवा मुझे दी जावे। पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज मालेरकोटला के चातुर्मास आपकी तर्क बुद्धि का चमत्कार देख चुके थे। अतएव मुनि उदयचंद जी को प्रसन्नतापूर्बक आज्ञा दे दी गई। मुनि उदयचंद अपने एकमात्र शिष्य लक्ष्मणदास को लेकर सहर्ष अपनी विजय यात्रा के पथ पर चल पड़े। आत्माराम जी जहां भी जाते मुनि
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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