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________________ गणि उदयचन्द जी का सम्पर्क २६५ ज्ञान प्राप्त किया था। इस समय श्राप मुनि उदयचन्द जी को जैन सूत्रों का अध्ययन कराया करते थे। रावलपिण्डी के चातुर्मास के बाद मुनि संघ ने स्यालकोट की ओर-विहार किया। रावलपिण्डी के अनेक भाई भी उनके साथ ही चले । मुनि संघ जब किला रोहतास पहुंचा तो वहां जेहलम निवासी श्री बिहारीलाल जी मिले। आप बहुत समय से वैराग्य भावना में बह रहे थे। आप अमृतसर के श्रोसवाल थे, किन्तु कारोवारं जेहलम मे करने के कारण जेहलम निवासी ही बन गये थे। आपकी दीक्षा लेने की लगन पुरानी थी। किन्तु घर वालों की अनुमति न मिलने से सकल मनोरथ न हो सके थे। इस बार उन्होंने घर वालों की अनुमति का समाचार सुना कर दीक्षा देने की प्रार्थना की। रावलपिण्डी वाले भाइयों को पता लगा तो उन्होंने वापिस रावलपिण्डी जा कर दीक्षा कराने का आग्रह किया। पूज्य श्री वापिस लौटना नहीं चाहते थे। किन्तु रावलपिएडी वालों के अत्यधिक श्राग्रह के कारण आपको अपना विचार बदलना पड़ा। अस्तु आप वापिस रावलपिण्डी गए और वहां बिहारीलाल जी को दीक्षा अत्यन्त समारोह पूर्वक दी गई। मुनि संघ कुछ दिनों रावलपिण्डी मे रह कर फिर विहार के लम्बे मार्ग पर अग्रसर हुआ। पूज्य सोहनलाल जी ने ग्रामानुग्राम धर्म प्रचार करते हुए, मुसलमानों आदि से मांसाहार छुड़ाते हुए, हिंसक-अनार्य देश में भी अहिंसा भाव की गंगा बहाते हुए, कल्लर, रौतास, गुजरात तथा कुञ्जाह में धर्म प्रचार करते हुए वजीराबाद पधारे। यहां आपको लाहौर के श्री संघ का चातुर्मास करने का निमंत्रण मिला । आपने उनका अत्यधिक आग्रह देखकर उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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