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ऐसा आदर्श उपस्थित किया कि उस से धारी का जीवन एकदम बदल गया और किसान का संकट भी दूर हो गया। यदि हमारे
आज के भारत में हमारे विद्यार्थी भी अपना आचरण ऐसा ही बना लें तो निश्चय से भारत में ऐसे नागरिक उत्पन्न होंगे जो मारे संसार को भारतीय सभ्यता से दीक्षित करके विश्व शांति के देवदूत प्रमाणित होंगे।
इसमें सन्देह नहीं कि श्री मोहन लाल जी में बचपन से ही अनेक अलौकिक गुण थे। बचपन में दूसरों के झगड़ों का फैसला करना, अपनी चतुरता से घर की चोरी को निकलवा कर घर में सदा के लिये चोरी होना बन्द करा देना उनके ऐसे कार्य हैं, जिनकी श्राशा हम बड़े २ आदर्श विद्यार्थियो से भी नहीं कर सकते । वास्तव में यह उनका एक अलौकिक गुण था, जो उनके भावी जीवन की अलौकिकता श्री ओर संकेत कर रहा था। उनके द्वारा की हुई दीनों की सहायता का वर्णन हम कुछ ऐसे आदर्श विद्यार्थियों के जीवन में पाते है, जो आगे चल कर बड़े आदमी बन गए। हमारे विद्यार्थियों को आज प्राचार्य सोहन लाल जी महाराज के विद्यार्थी जीवन के उस सत्कार्य का अनुकरण करने की आवश्यकता है। जो विद्यार्थी अपने जीवन में इस गुण का सम्पादन कर लेंगे, वह आगे चल कर निश्चय से बड़े आदमी वनेंगे।
यह भारत का दुर्भाग्य है कि वह राजनीतिक स्वराज्य प्राप्त कर लेने पर भी अभी तक आर्थिक रूप से पौंड तथा डालर की दासता के बंधन में पड़ा हुआ है। हमारे शासनविधान के मौलिक अधिकारों में यह स्वीकार किया गया है कि प्रत्येक भारतीय का यह अधिकार है कि ' (१) उसे निःशुल्क शिक्षा मिले। .