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________________ प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी २४७ कई सौ मिस्त्री, राज तथा मजदूर काम करते थे। उसने उनको दैनिक मजदूरी बांटने के लिने दस सहस्र रुपया मंगवाया, सो किसी को दस-दस रुपये दैनिक से लेकर रुपया-रुपया आठ आठ आने तक करके सब रुपया बांट दिया गया। इस पर रुपया-रुपया पाठ-आठ आने पाने वाले मजदूरों में असंतोष बढ़ गया कि ठेकेदार दस सहस्र रुपया सव स्वयं खा गया, और उनको केवल रुपया-रुपया तथा आठ-आठ आने दे दे कर ही टाल दिया गया। इस पर एक अन्य ठेकेदार ने अगले दिन इस सहस्र रुपया मंगवा कर अलग रख दिया, और दस सहस्त्र कंकड़ियां मंगवा कर उन मजदूरों के सामने एक एक कंक्डी को एक रुपया मान कर सब मे बंटवा दिया। जब इस प्रकार कम वेतन पाने वाले मजदूर संतुष्ट होगए तो उसने फिर उनको असली रुपया उसी हिसाब से बांट दिया। इसी प्रकार कंकरी को कंकरी ही माना जावेगा, असली रुपया नहीं माना जा मकता । इसी प्रकार मूर्ति को मूर्ति ही माना जावेगा, असली भगवान मान कर उसकी पूजा नहीं की जा सकती। कई मूर्तिपूजकों का कहना है कि वह मूर्ति को सामने रख . कर भगवान का ध्यान करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वह मूर्ति के साथ साथ भगवान का ध्यान भी करके एक साथ दो वस्तु का ध्यान करते हैं, किन्तु शास्त्र का विधान यह है कि एक समय में एक विषय का उपयोग ही हो सकता है। दो वस्तुओं. का एक साथ उपयोग कभी भी नहीं हो सकता। न्याय दर्शन का भी यह प्रसिद्ध सिद्धान्त है युगपत्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिंगम् । ' एक साथ दो वस्तुओं का ज्ञान न हो सकना मन का चिह्न है ।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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