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________________ २३५ प्रतिवादीभयंकर मुनि सोहनलाल जी को न बुलावें। यदि वह वहां से विहार कर चुके हों तो उनको वापिस करवा दें। कारण कि रास्ता कच्चा है तथा ऋतु बरसात की है। मार्ग में अनेक दरिया तथा नदियां हैं। साधुओं को श्राने में कष्ट होगा।" गुजरानवाला के स्थानकवासी श्रावकों ने इस प्रकार की बातों को सुन कर उन्हे स्वीकार कर लिया। गुजरानवाला से नारोवाल समाचार भेज दिया गया, और वहां से वह समाचार मुनि सोहनलाल जी को भी मिल गया। इसके अतिरिक्त यह समाचार पूज्य श्री के पास अमृतसर भी भेज दिया गया। पूज्य श्री ने भी इस समाचार को पाकर मुनि सोहनलाल को लौटने की आज्ञा भेज दी। अतएव मुनि सोहनलाल जी ठाणे तीन से अमृतसर वापिस पहुंच गए। अब मुनि सोहनलाल जी फिर अपने पठन पाठन मे लग गए। वह तीन सहस्र गाथाओं का दैनिक स्वाध्याय किया करते थे। श्री पूज्य अमरसिंह जी महाराज का आषाढ़ शुक्ला द्वितीया संवत् ११३८ को स्वर्गवास होने के उपरांत श्री संघ ने सम्मति करके श्रीमान् पंडित रामवृक्ष जी महाराज को ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया संवत् १६३६ को मालेरकोटला नामक नगर में आचार्य पद पर स्थापित किया। किन्तु पूज्य राम वृक्ष जी महाराज की आयु स्वल्प होने के कारण उनका इस घटना के २१ दिन के बाद ज्येष्ठ शुक्ल नवमी संवत् १९३६ को स्वर्गवास हो गया। इसके बाद श्री संघ ने पारस्परिक परामर्श के उपरांत श्री स्वामी मोती राम जी महाराज को आचार्य पद दिया। आप परम शान्त परिणामों वाले थे तथा जन्म से कोली क्षत्रिय थे। अब पूज्य श्री
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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